5/26/2025

hindi quotes 1.2

Quotes 2

हर एक पुरुषार्थी साधक और सेवक को चाहिए कि वह आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए दृढ़ भावना से, पूर्ण हृदय उसमें उंडेलकर सतत प्रयत्न करता रहे।

2

ईश्वर मदद देता है तो उसका भान ही नहीं होता।
वह बिना हाथ के देगा, बिना आंख के देखेगा, बिना कान के सुनेगा।

3
परमेश्वर के चिंतन से
चित्त का चैतन्य हो जाता है। भक्तियोग में यह अनुभव आता है।

4

चित्त धोने के लिए उपयोगी -

मृत्तिका – तपस्या ।

जल - हरिप्रेम ।


5.


साधना की नहीं जाती, साधना होती है।
किया जाता है कर्मयोग, जिसमें भगवदार्पण भर दिया जाये तो वही होती है साधना ।


6


मनुष्य को भले संसार में रहना पड़े, वाणी में वह संसार न भरे। वाणी हरिनाम-स्मरण की ओर ही लगाये।

7

हम परमेश्वर से तन्मय होकर क्षणभर के लिए तो संसार को भुला दें !

8

योग यानी अपनी खुद की मुलाकात ! दुनिया में बहुतों की मुलाकात होती है, अपनी नहीं।

9
हम पर सबका हक है, लेकिन हमारा ईश्वर के सिवा किसी पर हक नहीं। यह ध्यान में आ जाये तो मनुष्य निरंतर प्रसन्न रहेगा।

10

चित्त-समाधान भगवत्कृपा की पहचान है। भगवान को हमारी सेवा मंजूर है, इसकी वह रसीद है।

11

भगवान में विश्वास, यानी दुनिया में विश्वास, यानी आत्मा में विश्वास, यानी सत्य में विश्वास ।

12

प्राप्त परिस्थिति चाहे जैसी हो, उसका भाग्य बना लेने की कला भक्त में होती है।

13

परमेश्वर जरा कसौटी करता है, ज्यादा नहीं करता।
जरा-सी कसौटी में मनुष्य टूट गया तो टूट ही गया। अगर उतने में न टूटा तो करुणामय की करुणा काम करने लगती है।

14
इस दुनिया का भार हम पर नहीं है। यह तो उस पर है, जिसकी यह लीला है। हम तो इर्द-गिर्द के वातावरण में जितनी सुगंध फैला सकें, उतनी फैलाने की चेष्टा करें।

15 

आत्मज्ञान प्राप्त करके मरें। राग-द्वेष खत्म होने के बाद कभी भी मरें। उसके पहले मरना शोकास्पद है।

16

हृदय में राम, मुख में नाम और हाथ में सेवा का काम -यही है आज की साधना ।

17

भक्ति और अहंता की कभी नहीं बनती। भक्ति में बिल्कुल कम-से-कम है अहंतामुक्ति ! जहां 'खुद' खतम हो जाता है, वहीं 'खुदा' प्रकट होता है।

18

विषय-वासना से मुक्ति का उपाय है : सत्संगति, निरंतर जाग्रत कर्मयोग और ईश्वरभक्ति

19
साधक हर वस्तु के बारे में आध्यात्मिक दृष्टि रखेगा। वह अपना परीक्षण करता रहेगा।

20

सत्-संकल्प करें, अवधि तय करें और काम में लगें।

21

दुनिया में क्या धरा है ? दो दिन रहना है। अधिक-से-अधिक प्रेम, सेवा और त्याग करना है।


22
प्रतिभा यानी बुद्धि को सतत नये-नये अंकुर फूटना।

नयी कल्पना, नया उत्साह, नयी खोज, जीवन की नयी दिशा -इसको कहेंगे प्रतिभा।

23

मेरी मान्यता है कि सब लोगों को और खासकर आध्यात्मिक साधना करनेवालों को तो सत्य को कभी छिपाना ही नहीं चाहिए। यही सर्वोत्तम साधना होगी।

24

निष्ठा की कसौटी तब होती है, जब अपने सिद्धांत पर चलते हुए खतरा दीखता है और तकलीफ होती है। जिसकी सत्य पर निष्ठा है, वह उसके लिए सब कुछ सहन करता है।

25


सोने में अनियमितता का अर्थ है समाधि का अनादर। सत्यशोधक को निद्रा के बारे में आग्रह रखना चाहिए।

26
जीवन की हर कृति में - खाने-पीने में, बोलने में, रहन-सहन में संयम की आवश्यकता है।

27

मनुष्य का मुख्य धर्म कौन-सा ?

- मनुष्यता ।

28

जो भी देखें, वहां भगवान को देखें; जो भी सुनें, वहां भगवान को सुनें। पहले इंद्रियां देना, फिर मन-बुद्धि आयेंगे। उत्तरोत्तर अंतर में जाते-जाते समर्पण करना।






















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