11/14/2020

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सामान्यतया ऊर्जा तुमसे दूर जा रही है वस्तुओं की तरफ, लक्ष्यों की तरफ, दुनिया में। 
ऊर्जा तुमसे दूर जा रही है, इसलिए तुम खालीपन महसूस करते हो। ऊर्जा दूर चली जाती है, फिर कभी वापस नहीं आती; तुम ऊर्जा फेंकते चले जाते हो। बाद में तुम लुटे-लुटे और निराश महसूस करते हो। कुछ भी वापस नहीं आता। तुरंत ही तुम एक खालीपन महसूस करते हो। ऊर्जा हर दिन बस बाहर की ओर बह रही है– और फिर मृत्यु आ जाती है। मृत्यु और कुछ नहीं बल्कि इस बात की सूचक है कि तुम शक्तिहीन हो चुके हो और थक चुके हो।’

इसे समझना जीवन में सबसे बड़ा चमत्कार है, और ऊर्जा को वापस घर की तरफ मोड़ना। यह भीतर की ओर मुड़ना है। ऐसा नहीं कि सब छोड़ कर तुम दुनिया से भाग जाते हो। तुम दुनिया में रहते हो– कुछ भी छोड़ने या कहीं ओर जाने की आवश्यकता नहीं है। तुम दुनिया में रहते हो, परंतु पूरी तरह एक अलग तरीके से। अब तुम दुनिया में रहते हो परंतु तुम अपने आप में केंद्रित बने रहते हो; तुम्हारी ऊर्जा तुम पर वापस लौटती रहती है।

‘अब तुम बहिर्मुखी नहीं रहते: तुम अंतर्मुखी हो जाते हो। निश्चित ही तुम एक ऊर्जा-कुंड बन जाते हो, एक जलाशय, और ऊर्जा है प्रसन्नता, विशुद्ध आनंद। वहां सिर्फ ऊर्जा होती है, लबालब बहती हुई, और तुम आनंदित होते हो, और उसे बांट सकते हो, और प्रेम में तुम उसे दे सकते हो।’

‘जहां भी तुम जाते हो, जो भी तुम करते हो, हमेशा उसे भीतरी प्रकाश में करना जागरूकता के साथ। ध्यान इसी सबके लिए ही है– ज्यादा होशपूर्ण बनने के लिए। इसी जीवन को जीना है, बस अपने होश को बदल देना है– इसे ज्यादा प्रगाढ़ बनाना है। वही भोजन करना है, उसी रास्ते पर चलना है, उसी घर में रहना है, उसी स्त्री और उसी बच्चे के साथ, परंतु भीतर बिलकुल अलग हो जाना है। होशपूर्ण बन जाना है! उसी रास्ते पर चलो, परंतु होश के साथ। अगर तुम होशपूर्ण हो जाओ, अचानक वही रास्ता वही नहीं रहता, क्योंकि तुम वही नहीं हो। अगर तुम होशपूर्ण हो जाते हो, वही खाना वही नहीं रहता, क्योंकि तुम वही नहीं रहते, वही स्त्री वही नहीं रहती, क्योंकि तुम वही नहीं हो। तुम्हारे भीतरी परिवर्तन से सब-कुछ बदल जाता है।’

‘अगर कोई अपने भीतर को बदल लेता है, तो उसका बाहर पूरी तरह से बदल जाता है। यही है संसार की मेरी परिभाषा–तुम निश्चित रूप से एक गहरे भीतरी अंधकार में जी रहे होओगे, इसलिए ही संसार है। अगर तुम अपने भीतर के दीपक को प्रकाशित कर लो, अचानक संसार विदा हो जाता है, और वहां केवल परमात्मा रह जाता है। सब-कुछ तुम्हारे भीतर की जागरूकता एवं बेहोशी पर निर्भर करता है। केवल वही एक बदलाव, वही एक परिवर्तन, वही एक क्रांति है, जिसे किया जाना है।’

(ओशो: दि धम्मपदा: दि वे ऑफ़ दि बुद्धा)

2

Sat Sang means association with Sat or Reality. One who knows or has realized Sat is also regarded as Sat. Such association is absolutely necessary for all. 

Sankara has said, 
“In all the three worlds there is no boat like sat sang to carry one safely across the ocean of births and deaths.”

Guru not being physical, His contact will continue after His form vanishes. If one Jnani exists in the world, His influence 
will be felt by or benefit all people in the world, and not simply His immediate disciples. 

As described in Vedanta Chudamani, 
all the people in the world can be put under four categories: 
The Guru’s disciples, bhaktas, those who are indifferent to Him and those who are hostile to Him. All these will be benefited 
by the existence of the Jnani - each in his own way and to various degrees.

- GEMS from Bhagvan Sri Ramana Maharshi

1

"Everyone is God, 
but we do not see it unless we see God within ourselves. 

If you first see God in yourself you will see him in the animals, birds, rocks.

Surrender to God and keep Quiet and he will take your responsibilities. 

As long as you take your responsibilities on your own head, 
God doesn't take care and it seems that he is hiding."

❤ Papaji