एक राजनीतिज्ञ के खिलाफ किसी अखबार ने कुछ लिख दिया। वह बड़ा नाराज हो गया।
वह बड़ा गुस्से में आया। मुल्ला नसरुद्दीन उसके मित्र हैं, उनके पास पहुंचा और कहा कि मैं इसको मिटाकर रहूंगा, अदालत में ले जाऊंगा।
नसरुद्दीन ने कहा, "बैठो। इस गांव में कितने लोग हैं।'
उसने कहा, "दस हजार।'
"कितने लोग अखबार पढ़ते हैं?'
तो उसने कहा, "मुश्किल से हजार।'
"नौ हजार की तो फिक्र छोड़ दो। हजार अखबार पढ़ते हैं, उनमें से कितने लोग तुमको जानते हैं?'
"मुश्किल से आधे लोग जानते होंगे।'
"पांच सौ बचे।
इन पांच सौ में से कितने लोग पहले से ही जानते हैं कि तुम गड़बड़ हो? अखबार ने कोई नई बात तो छापी नहीं। कोई झूठ भी नहीं छापा।'
नसरुद्दीन ठीक जगह पर ले आया बात को। उस राजनीतिज्ञ ने थोड़ा संकोच करते हुए कहा, "आधे लोग।'
"तो ढाई सौ लोग बचे। ये ढाई सौ लोग क्या बिगाड़ लेंगे तुम्हारा? ढाई सौ लाग जानते हैं कि तुम गड़बड़ हो, उन्होंने क्या बिगाड़ लिया? ये भी जान लेंगे तो क्या बिगाड़ लेंगे? तुम फिजूल ढाई सौ लोगों के पीछे पंचायत में मत पड़ो। और उनमें से भी कई बाहर गए होंगे, गांव में न होंगे, कई को आज अखबार न मिला होगा। कई उसमें से इस खबर को चूक गए होंगे, पढ़ा न होगा। कई ने पढ़ा भी होगा, लेकिन कुछ और सोच रहे होंगे। तुम फिजूल की परेशानी में मत पड़ो। असलियत अगर ठीक से समझी जाए तो तुम्हारे सिवाय इस अखबार को किसी ने ठीक से नहीं पढ़ा है। किसको प्रयोजन है?'
तुम बहुत चिंता में रहते हो कि लोग क्या कहेंगे! लोग! यह भी अहंकार का हिस्सा है कि तुम सोचते हो कि लोग तुम्हारे संबंध में सोच रहे हैं। कौन फिक्र पड़ी है किसको?
*अपना—अपना सोचने को काफी है।* कोई तुम्हारे संबंध में नहीं सोच रहा है। फुर्सत किसे है? हां, एकाध दफा देख लेंगे तो शायद पूछ भी लें, शायद हंस लें तो वे पहले ही से हंस रहे हैं तुम पर। वे पहले से जानते थे। लोग पहले से ही जानते थे कि इनका दिमाग कुछ खराब है। अब गेरुआ पहन लिए हैं। कुछ नया नहीं होगा।
सुन भई साधो--प्रवचन--15
ओशो