एको द्रष्टासि सर्वस्य मुक्तप्रायोऽसि सर्वदा ।
अयमेव हि ते बन्धो द्रष्टारं पश्यसीतरम् ॥१-७॥
आप समस्त विश्व के एकमात्र दृष्टा हैं, सदा मुक्त ही हैं, आप का बंधन केवल इतना है कि आप दृष्टा किसी और को समझते हैं ॥७॥
You are the solitary witness of all that is, almost always free. Your only bondage is understanding the seer to be someone else.
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अहं कर्तेत्यहंमानमहाकृष्णाहिदंशितः ।
नाहं कर्तेति विश्वासामृतं पीत्वा सुखं भव ॥१-८॥
अहंकार रूपी महासर्प के प्रभाववश आप 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा मान लेते हैं। 'मैं कर्ता नहीं हूँ', इस विश्वास रूपी अमृत को पीकर सुखी हो जाइये ॥८॥
Ego poisons you to believe: “I am the doer”. Believe “I am not the doer”. Drink this nectar and be happy.
एको विशुद्धबोधोऽहं इति निश्चयवह्निना ।
प्रज्वाल्याज्ञानगहनं वीतशोकः सुखी भव ॥१-९॥
मैं एक, विशुद्ध ज्ञान हूँ, इस निश्चय रूपी अग्नि से गहन अज्ञान वन को जला दें, इस प्रकार शोकरहित होकर सुखी हो जाएँ ॥९॥
The resolution "I am single, pure knowledge”, consumes even the dense ignorance like fire. Be beyond disappointments and be happy.
एको द्रष्टासि सर्वस्य मुक्तप्रायोऽसि सर्वदा ।
अयमेव हि ते बन्धो द्रष्टारं पश्यसीतरम् ॥१-७॥
आप समस्त विश्व के एकमात्र दृष्टा हैं, सदा मुक्त ही हैं, आप का बंधन केवल इतना है कि आप दृष्टा किसी और को समझते हैं ॥७॥
You are the solitary witness of all that is, almost always free. Your only bondage is understanding the seer to be someone else.
यत्र विश्वमिदं भाति कल्पितं रज्जुसर्पवत् ।
आनंदपरमानन्दः स बोधस्त्वं सुखं चर ॥१-१०॥
जहाँ ये विश्व रस्सी में सर्प की तरह अवास्तविक लगे, उस आनंद, परम आनंद की अनुभूति करके सुख से रहें ।।१०।।
Feel the ecstasy, the supreme bliss where this world appears unreal like a snake in a rope, know this and move happily.
मुक्ताभिमानी मुक्तो हि बद्धो बद्धाभिमान्यपि।
किवदन्तीह सत्येयं या मतिः सा गतिर्भवेत् ॥१-११॥
स्वयं को मुक्त मानने वाला मुक्त ही है और बद्ध मानने वाला बंधा हुआ ही है, यह कहावत सत्य ही है कि जैसी बुद्धि होती है वैसी ही गति होती है ।।११।।
If you think you are free, you are free. If you think you are bound you are bound. It is rightly said: You become what you think.
आत्मा साक्षी विभुः पूर्ण एको मुक्तश्चिदक्रियः।
असंगो निःस्पृहः शान्तो भ्रमात्संसारवानिव ॥१-१२॥
आत्मा साक्षी, सर्वव्यापी, पूर्ण, एक, मुक्त, चेतन, अक्रिय, असंग, इच्छा रहित एवं शांत है। भ्रमवश ही ये सांसारिक प्रतीत होती है ।।१२।।
The soul is witness, all-pervading, infinite, one, free, inert, neutral, desireless and peaceful. Only due to illusion it appears worldly.
कूटस्थं बोधमद्वैतमात्मानं परिभावय।
आभासोऽहं भ्रमं मुक्त्वा भावं बाह्यमथान्तरम् ॥१-१३॥
अपरिवर्तनीय, चेतन व अद्वैत आत्मा का चिंतन करें और 'मैं' के भ्रम रूपी आभास से मुक्त होकर, बाह्य विश्व की अपने अन्दर ही भावना करें ।।१३।।
Meditate on unchanging, conscious and non-dual Self. Be free from the illusion of 'I' and think this external world as part of you.
देहाभिमानपाशेन चिरं बद्धोऽसि पुत्रक ।
बोधोऽहं ज्ञानखंगेन तन्निष्कृत्य सुखी भव ॥१-१४॥
हे पुत्र! बहुत समय से आप 'मैं शरीर हूँ' इस भाव बंधन से बंधे हैं, स्वयं को अनुभव कर, ज्ञान रूपी तलवार से इस बंधन को काटकर सुखी हो जाएँ ।।१४।।
O son, you are bound thinking- “I am body” since long. Experience the Self and by this sword of knowledge cut that bondage and be happy.
निःसंगो निष्क्रियोऽसि त्वं स्वप्रकाशो निरंजनः।
अयमेव हि ते बन्धः समाधिमनुतिष्ठति ॥१-१५॥
आप असंग, अक्रिय, स्वयं-प्रकाशवान तथा सर्वथा-दोषमुक्त हैं। आपका ध्यान द्वारा मस्तिस्क को शांत रखने का प्रयत्न ही बंधन है।।१५।।
You are free, still, self-luminous, stainless.Trying keep yourself peaceful by meditation is your bondage.
त्वया व्याप्तमिदं विश्वं त्वयि प्रोतं यथार्थतः ।
शुद्धबुद्धस्वरुपस्त्वं मा गमः क्षुद्रचित्तताम् ॥१-१६॥
यह विश्व तुम्हारे द्वारा व्याप्त किया हुआ है, वास्तव में तुमने इसे व्याप्त किया हुआ है। तुम शुद्ध और ज्ञानस्वरुप हो, छोटेपन की भावना से ग्रस्त मत हो ।।१६।।
You have pervaded this entire universe; really, you have pervaded it all. You are pure knowledge, don't get disheartened.