2/12/2020

quotes 7

Be less of a judge and you will be surprised that when you become a witness and you don't judge yourself, you stop judging others too. And that makes you more human, more compassionate, more understanding. 

~ Osho

quotes 6

 ज्ञानी और पंडित में भेद है। ज्ञानी वह है, जिसने जाना। पंडित वह है, जो उधार बातों को दोहरा रहा है।
पंडित के हाथ में धर्म पड़ जाता है कि बस उसकी हंसी खो जाती है, मुस्कुराहट खो जाती है। जिस दिन धर्म की हंसी खो जाती है, उसका नृत्य खो जाता है, पैर में घूंघर नहीं बजते, हाथ में बांसुरी नहीं रह जाती--बस उसके बाद फिर लाश है। फिर पूजो! फिर करते रहो हवनऱ्यज्ञ, हाथ कुछ भी न लगेगा, बस राख ही राख है। फिर राख का ही प्रसाद है। फिर राख को तुम चाहे विभूति कहो, जो तुम्हारी मर्जी। तुम्हारे विभूति कहने से राख कुछ विभूति नहीं हो जाती। मगर कैसे-कैसे लोग हैं, राख को विभूति कह रहे हैं! राख को सिर पर डाल रहे हैं, माथे पर लगा रहे हैं और सोच रहे हैं कि बड़ा पुण्य-कर्म किया होगा पिछले जन्मों में। इससे यह राख माथे पर लगी, सिर पर पड़ी। पुण्य-कर्म से राख बरसती है? न मालूम किन पापों का फल भोग रहे हो! लेकिन कहते हो--विभूति! अच्छे-अच्छे नाम व्यर्थ की बातों को हम दे लेते हैं।
नहीं रंजन, यह कोई लत नहीं है। हंसो, जी भर कर हंसो! और हंसी के संबंध में कंजूसी मत करना। लोग बहुत कंजूस हो गए हैं, हर चीज में कंजूस हो गए हैं। उन चीजों के संबंध में भी कंजूस हो गए हैं, जिनमें तुम्हारा कुछ खोता नहीं। उन चीजों में भी कंजूस हो गए हैं जिनमें कौड़ी नहीं लगती। उन चीजों तक में कंजूस हो गए हैं, जिनको बांटने से वे चीजें बढ़ती हैं, घटती नहीं।
जीवन का एक अदभुत नियम समझो। बाहर को जगत की जितनी चीजें हैं, बांटोगे तो घट जाएंगी। भीतर के जगत की जितनी चीजें हैं, बांटो तो बढ़ जाएंगी। भीतर का अर्थशास्त्र अलग। बाहर ऐसा करोगे तो अनर्थ हो जाएगा। बाहर का अर्थशास्त्र अलग है।
💃💃💃💃 प्रीतम छवि नैनन बसी  # 16 💃💃💃💃💃🎶🎶🎶 ओशो 🙏🙏

quotes 5

शिवलिंग 

शिवलिंग से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रतिमा पृथ्वी पर कभी नहीं खोजी गई। उसमें आपकी आत्मा का पूरा आकार छिपा है। और आपकी आत्मा की ऊर्जा एक वर्तुल में घूम सकती है, यह भी छिपा है। और जिस दिन आपकी ऊर्जा आपके ही भीतर घूमती है और आप में ही लीन हो जाती है, उस दिन शक्ति भी नहीं खोती और आनंद भी उपलब्ध होता है। और फिर जितनी ज्यादा शक्ति संगृहीत होती जाती है, उतना ही आनंद बढ़ता जाता है। *हमने शंकर की प्रतिमा को, शिव की प्रतिमा को अर्धनारीश्वर बनाया है।* शंकर की आधी प्रतिमा पुरुष की और आधी स्त्री की- यह अनूठी घटना है। जो लोग भी जीवन के परम रहस्य में जाना चाहते हैं, उन्हें शिव के व्यक्तित्व को ठीक से समझना ही पड़ेगा। और देवताओं को हमने देवता कहा है, शिव को महादेव कहा है। उनसे ऊंचाई पर हमने किसी को रखा नहीं। उसके कुछ कारण हैं। उनकी कल्पना में हमने सारा जीवन का सार और कुंजियां छिपा दी हैं। अर्धनारीश्वर का अर्थ यह हुआ कि *जिस दिन परममिलन घटना शुरू होता है, आपका ही आधा व्यक्तित्व आपकी पत्नी और आपका ही आधा व्यक्तित्व आपका पति हो जाता है।* आपकी ही आधी ऊर्जा स्त्रैण और आधी पुरुष हो जाती है। और इन दोनों के भीतर जो रस और जो लीनता पैदा होती है, फिर शक्ति का कहीं कोई विसर्जन नहीं होता। अगर आप बायोलॉजिस्ट से पूछें आज, वे कहते हैं- हर व्यक्ति दोनों है, बाई-सेक्सुअल है। वह आधा पुरुष है, आधा स्त्री है। होना भी चाहिए, क्योंकि आप पैदा एक स्त्री और एक पुरुष के मिलन से हुए हैं। तो आधे-आधे आप होना ही चाहिए। अगर आप सिर्फ मां से पैदा हुए होते, तो स्त्री होते। सिर्फ पिता से पैदा हुए होते, तो पुरुष होते। लेकिन आप में पचास प्रतिशत आपके पिता और पचास प्रतिशत आपकी मां मौजूद है। आप न तो पुरुष हो सकते हैं, न स्त्री हो सकते हैं- *आप अर्धनारीश्वर हैं।* बायोलॉजी ने तो अब खोजा है, लेकिन हमने अर्धनारीश्वर की प्रतिमा में आज से पचास हजार साल पहले इस धारणा को स्थापित कर दिया। यह हमने खोजी योगी के अनुभव के आधार पर। *क्योंकि जब योगी अपने भीतर लीन होता है, तब वह पाता है कि मैं दोनों हूं। और मुझमें दोनों मिल रहे हैं।* मेरा पुरुष मेरी प्रकृति में लीन हो रहा है; मेरी प्रकृति मेरे पुरुष से मिल रही है। और उनका आलिंगन अबाध चल रहा है; एक वर्तुल पूरा हो गया है। मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि आप आधे पुरुष हैं और आधे स्त्री। आपका चेतन पुरुष है, आपका अचेतन स्त्री है। और अगर आपका चेतन स्त्री का है, तो आपका अचेतन पुरुष है। उन दोनों में एक मिलन चल रहा है।
शिव की जगह-जगह पूजा हो रही है, 
लेकिन पूजा की बात नहीं है। 
शिवत्व उपलब्धि की बात है। 
वह जो शिवलिंग तुमने देखा है बाहर मंदिरों में, 
वृक्षों के नीचे, तुमने कभी ख्याल नहीं किया, 
उसका आकार ज्योति का आकार है। 
जैसे दीये की ज्योति का आकार होता है।
शिवलिंग अंतर्ज्योति का प्रतीक है। 
जब तुम्हारे भीतर का दीया जलेगा 
तो ऐसी ही ज्योति प्रगट होती है, 
ऐसी ही शुभ्र! यही रूप होता है उसका। 
और ज्योति बढ़ती जाती है, बढ़ती जाती है। 
और धीरे धीरे ज्योतिर्मय व्यक्ति के चारों 
तरफ एक आभामंडल होता है; 
उस आभामंडल की आकृति भी अंडाकार होती है।
रहस्यवादियों ने तो इस सत्य 
को सदियों पहले जान लिया था। 
लेकिन इसके लिए 
कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं थे।
लेकिन अभी रूस में 
एक बड़ा वैज्ञानिक प्रयाग ची नहा है-
किरलियान फोटोग्राफी। 
मनुष्य के आसपास जो ऊर्जा का मंडल होता है, 
अब उसके चित्र लिये जा सकते हैं। 
इतनी सूक्ष्म फिल्में बनाई जा चुकी हैं, 
जिनसे न केवल तुम्हारी देह का चित्र बन जाता है, 
बल्कि देह के आसपास जो विद्युत प्रगट होती है,
उसका भी चित्र बन जाता है।
और किरलियान चकित हुआ है, 
क्योंकि जैसे -जैसे व्यक्ति शांत होकर बैठता है, 
वैसे – वैसे उसके आसपास का जो विद्युत मंडल है, 
उसकी आकृति अंडाकार हो जाती है। 
उसको तो शिवलिंग का कोई पता नहीं है, 
लेकिन उसकी आकृति अंडाकार हो जाती है। 
शांत व्यक्ति जब बैठता है
ध्यान तो उसके आसपास की 
ऊर्जा अंडाकार हो जाता है। 
अशांत व्यक्ति के आसपास की 
ऊर्जा अंडाकार नहीं होती, खंडित होती है, 
टुकड़े -टुकड़े होती है। उसमें कोई संतुलन नहीं होता। 
एक हिस्सा छोटा- कुरूप होती है।
शिवलिंग ध्यान का प्रतीक है। 
वह ध्यान की आखिरी गहरी अवस्था का प्रतीक है।
और जिसने ध्यान जाना हो, 
उसके ही भीतर गोरख जैसा ज्ञान पैदा होता है। 
संतों की परंपरा में गोरख का बड़ा मूल्य है।
क्योंकि गोरख ने जितनी 
ध्यान को पाने की विधिया हद हैं, 
उतनी किसी ने नहीं दी हैं। 
गोरख ने जितने द्वार ध्यान के खोले, 
किसी ने नहीं खोले।
गोरख ने इतने द्वार खोले 
ध्यान के कि गोरख के नाम 
से एक शब्द भीतर चल पड़ा है-
गोरखधंधा! गोरख ने इतने द्वार खोले 
कि लोगों को लगा कि यह 
तो उलझन की बात हो गयी।
गोरख ने एक- आध द्वार नहीं खोला, 
अनंत द्वार खोल दिये! गोरख ने इतनी 
बातें कह दीं, जितनी किसी ने कभी नहीं कही थीं।
बुद्ध ने ध्यान की एक प्रक्रिया दी है, 
विपस्सना; बस पर्याप्त। 
महावीर ने ध्यान की एक प्रक्रिया दी है, 
शुक्ल ध्यान; बस पर्याप्त। 
पतंजलि ने ध्यान की एक प्रक्रिया दी है, 
निर्विकल्प समाधि। बस पर्याप्त।
गोरख ने परमात्मा के मंदिर के
जितने संभव द्वार हो सकते हैं, 
सब द्वारों की चाबिया दी हैं।
लोग तो उलझन में पड़ गये, 
बिगूचन में पड़ गये, 
इसलिए गोरखधंधा शब्द बना लिया। 
जब भी कोई बिगूचन में पड़ जाता है 
तो वह कहता है बड़े गोरखधंधे में पड़ा हूं। 
तुम्हें भूल ही गया है कि गोरख शब्द कहां से आता है;
गोरखनाथ से आता है। 
गोरखनाथ अद्भुत व्यक्ति हैं। 
उनकी गणना उन थोड़े -से लप्तेगे में होनी 
चाहिए-कृष्ण, बुद्ध, महावीर, पतंजलि, गोरख… 
बस। इन थोड़े – से लोगों में ही उनकी गिनती हो सकती है। 
वे उन परम शिखरों में से एक हैं।

ओशो

quotes 4

"The purpose of human life is to find God. That is the only reason for our existence. Job, friends, material interests--these things in themselves mean nothing. They can never provide you with true happiness, for the simple reason that none of them, in itself, is complete.

Only God encompasses everything.
That is why Jesus said, "Seek ye first the kingdom of God, and all these things shall be added unto you." Seek ye first the Giver of all gifts, and you shall receive from Him all His gifts of lesser fulfillment."

- Sri Paramahansa Yogananda

quotes 3

धर्म अनुभूती में है #vidya

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" गौतम बुद्ध पारंपरिक नहीं है, मौलिक हैं। वे ऐसा नहीं कहते कि अतीत के ऋषियों ने ऐसा कहा था, इसलिए मान लो। वे ऐसा नहीं कहते कि वेद में ऐसा लिखा है, इसलिए मान लो। वे ऐसा नहीं कहते कि मैं कहता हूँ, इसलिए मान लो। वे कहते हैं, जब तक तुम न जान लो, मानना मत। उधार श्रद्धा दो कौड़ी की है। विश्वास मत करना, खोजना। अपने जीवन को खोज में लगाना। "

~ ओशो , एस धम्मो सनन्तनो, भाग - 5 <3...

quotes 2

#महाशिवरात्री निमित्त ओशो  का खास लेख...

ओशो शिवलिंग से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रतिमा पृथ्वी पर कभी नहीं खोजी गई। उसमें आपकी आत्मा का पूरा आकार छिपा है। और आपकी आत्मा की ऊर्जा एक वर्तुल में घूम सकती है, यह भी छिपा है। और जिस दिन आपकी ऊर्जा आपके ही भीतर घूमती है और आप में ही लीन हो जाती है, उस दिन शक्ति भी नहीं खोती और आनंद भी उपलब्ध होता है। और फिर जितनी ज्यादा शक्ति संगृहीत होती जाती है, उतना ही आनंद बढ़ता जाता है। हमने शंकर की प्रतिमा को, शिव की प्रतिमा को अर्धनारीश्वर बनाया है। शंकर की आधी प्रतिमा पुरुष की और आधी स्त्री की- यह अनूठी घटना है। जो लोग भी जीवन के परम रहस्य में जाना चाहते हैं, उन्हें शिव के व्यक्तित्व को ठीक से समझना ही पड़ेगा। और देवताओं को हमने देवता कहा है, शिव को महादेव कहा है। उनसे ऊंचाई पर हमने किसी को रखा नहीं। उसके कुछ कारण हैं। उनकी कल्पना में हमने सारा जीवन का सार और कुंजियां छिपा दी हैं। अर्धनारीश्वर का अर्थ यह हुआ कि जिस दिन परममिलन घटना शुरू होता है, आपका ही आधा व्यक्तित्व आपकी पत्नी और आपका ही आधा व्यक्तित्व आपका पति हो जाता है। आपकी ही आधी ऊर्जा स्त्रैण और आधी पुरुष हो जाती है। और इन दोनों के भीतर जो रस और जो लीनता पैदा होती है, फिर शक्ति का कहीं कोई विसर्जन नहीं होता। अगर आप बायोलॉजिस्ट से पूछें आज, वे कहते हैं- हर व्यक्ति दोनों है, बाई-सेक्सुअल है। वह आधा पुरुष है, आधा स्त्री है। होना भी चाहिए, क्योंकि आप पैदा एक स्त्री और एक पुरुष के मिलन से हुए हैं। तो आधे-आधे आप होना ही चाहिए। अगर आप सिर्फ मां से पैदा हुए होते, तो स्त्री होते। सिर्फ पिता से पैदा हुए होते, तो पुरुष होते। लेकिन आप में पचास प्रतिशत आपके पिता और पचास प्रतिशत आपकी मां मौजूद है। आप न तो पुरुष हो सकते हैं, न स्त्री हो सकते हैं- आप अर्धनारीश्वर हैं। बायोलॉजी ने तो अब खोजा है, लेकिन हमने अर्धनारीश्वर की प्रतिमा में आज से पचास हजार साल पहले इस धारणा को स्थापित कर दिया। यह हमने खोजी योगी के अनुभव के आधार पर। क्योंकि जब योगी अपने भीतर लीन होता है, तब वह पाता है कि मैं दोनों हूं। और मुझमें दोनों मिल रहे हैं। मेरा पुरुष मेरी प्रकृति में लीन हो रहा है; मेरी प्रकृति मेरे पुरुष से मिल रही है। और उनका आलिंगन अबाध चल रहा है; एक वर्तुल पूरा हो गया है। मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि आप आधे पुरुष हैं और आधे स्त्री। आपका चेतन पुरुष है, आपका अचेतन स्त्री है। और अगर आपका चेतन स्त्री का है, तो आपका अचेतन पुरुष है। उन दोनों में एक मिलन चल रहा है। ('नहि राम बिन ठांव')-ओशो

quotes 1

Bhagavan is always with you, in you, and you are yourself Bhagavan. To realise this it is neither necessary to resign your job nor run away from home. Renunciation does not imply apparent divesting of costumes, family ties, home, etc., but renunciation of desires, affection and attachment. There is no need to resign your job, only resign yourself to God, the bearer of the burden of all.

(Crumbs from His Table)

post 2

The ego is like the son of a barren woman – it doesn't exist. It is a false projection of a confused and ignorant mind.

As long as you feel you have to do something or gain some result, it means that you are still in the clutches of the illusion.

Forget the illusion and be Him. Doing nothing is Reality.

- Sri Ranjit Maharaj.

post 1

There is no sadhana better than just staying as Peace.
If you must do any practice, then do Vichar.
Joy is also a good sadhana because
it destroys mind, so always be happy.
Always think of It and be happy:
spend the rest of your life knowing
you are Existence-Consciousness-Bliss.

Some practice is better than getting lost in samsara
and is good in that it fatigues the mind,
but typical sadhana is usually important only for the ego.
All sadhana is projected by ego so it is on a sandy foundation.
This ego projection is samsara so search only for the seeker.
"I" is ego so when this meditates there are no good results.

Choice of practice depends on the choice of results.
Brahman has no attributes and is beyond mind
so no practice will take you to that: It is self revealing.
Ramana says "Simply keep Quiet for it is Here and Now."
This is the nearest practice because
Brahman is your nature.

🌺 Papaji

quotes 8

 

quotes 7

 

quotes 6

If u can simply live your life not running behind money, status, fame.. 
If you can live just for today without plans, goals...

If you can just live your life for nothing, then , your ultimate flowering and inner peace will be realised... That is what sanyas is.

Truths of Sanyas..

quotes 5

Your eyes are the windows through which i can gaze into the heart of God.
My eyes are the mirror in which you can see God reflected inside your own being.

~ Mooji

quotes 4

Sadhak realizes that
he is only an actor playing his role in the drama of life,
the 'leela' of the Supreme..
Ramana..

quotes 3

quotes 2

 

quotes 1

The Wise, who know that all worldly experiences are formed by prarabdha alone, never worry about their life’s requirements. Know that all one’s requirements will be thrust upon one by prarabdha, whether one wills them or not. 

('Guru Vachaka Kovai', v. 150)