1/28/2012

subhashit

 सुभाषित:
चित्तस्य शुद्धये कर्म न तु वस्तूप्लब्ध्ये |
वस्तुसिद्धिर्विचारेण न किंचित्कर्म कोटिभि:|| [ आदि जगदगुरु शंकराचार्य: ]

कर्म केवल मन के पवित्रीकरण के लिए हैं, किसी भी प्रकार की उपलब्धि(सांसारिक अथवा अध्यात्मिक) के लिए नहीं | सत्य (सिद्धि) की उपलब्धि केवल विवेक पूर्ण विचार ( सत्य असत्य के भेद के चिंतन) से ही होती है, न कि कोटि कर्मो से |

... [ इसका अर्थ यह है... कि कर्म केवल मन को पवित्र करने के लिए ही हैं और फिर पवित्र मन में सत्य (ब्रह्म परमेश्वर) स्वयं प्रकट हो जाते हैं ]

Work is for the purification of mind, not for the perception of reality. The realisation of Truth is brought about by Discrimination and not in the least by ten million of acts.

[ The idea is that... works properly done cleans the mind of its impurities... and then the Truth flashes itself...]

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