7/20/2017

Guru

The Guru

Mr. Evans-Wentz continued another day: "May one have more than one spiritual master?"

M.: Who is a Master? He is the Self after all. According to the stages of the development of the mind the Self manifests as the Master externally. The famous ancient saint Avadhuta said that he had more than 24 Masters. The Master is   one from whom one learns anything. The Guru may be sometimes inanimate also, as in the case of Avadhuta. God, Guru and the Self are identical.

A spiritual-minded man thinks that God is all-pervading and takes God for his Guru. Later, God brings him in contact with a personal Guru and the man recognises him as all in all. Lastly the same man is made by the grace of the Master to feel that his Self is the Reality and nothing else. Thus he finds that the Self is the Master.
D.: Does Sri Bhagavan initiate his disciples?
Maharshi kept silent.

Thereafter one of the devotees took it upon himself to answer, saying, "Maharshi does not see anyone as outside his Self. So there are no disciples for him. His Grace is all-pervading and He communicates his Grace to any deserving individual in silence."

source: Talk 23

Osho

तीसरा प्रश्न :
ओशो! आप ही मेरे सब कुछ हो। आपके रंग में पूरी तरह डूब गयी हूं। मेरा यह समर्पण पूरा है या अधूरा, मैं कुछ नहीं जानती। फिर भी मैं जैसी हूं, आनंदित हूं। आपके पहले मेरा न किसी संत से मिलना हुआ, न आगे किसी से मिलने की इच्छा है। फिर भी शायद आगे किसी तथाकथित साधु से मिलना हो जाए कि जो चमत्कार, जादू-टोना करनेवाला हो, तो क्या उसके सम्मोहन का मुझ पर असर हो जाएगा? कृपया बताने की अनुकंपा करें।

शांता भारती! जिस पर मेरा सम्मोहन चल गया, फिर उस पर किसी का सम्मोहन नहीं चलता है। उसकी तू चिंता छोड़। आखिरी बात हो ही गई। अब कहां जादू-टोना!

क्या आशा अभिलाषा, बन्दे अब यह रोना-धोना क्या?
दृष्टि लग गई जब कि नियति की, तब जादू और टोना क्या?
इतना तो हो चुका अभी तक, अरे और अब होना क्या?
अपने ही को जब कि खो चुके तब आगे अब खोना क्या?
नंग नहाये ताल तलैया धोना और निचोना क्या?
जब यों बे-घर-बार हुए तब बाती दीप संजोना क्या?
जब आकाश बन गया चंदुवा तब छप्पर में सोना क्या?
जब संग्रह का विग्रह छूटा तब अब स्वर्ग खिलौना क्या?
हलके हो कर तुम निकले हो फिर यह बोझा ढोना क्या?
कथरी छोड़ी कासा छोड़ा, गठरी और बिछौना क्या?
तुमने कब दुकान लगायी तब डयौढ़ा औ पौना क्या?
मस्त रहो, ओ रमते जोगी लुटिया आज डुबौना क्या?
अब फिकर छोड़ो। अब कोई जादू-टोना कुछ कर सकेगा नहीं। अब तो डूब ही गये। अब और कोई क्या डुबायेगा? अब बचे नहीं। अब कोई और क्या मिटायेगा? नहीं, अब कोई चिंता नहीं है।
और, तू सौभाग्यशाली है शांता, कि सीधे ही सागर के पास आ गयी! छोटी तालत्तलैयों में न उलझी। और जिसने सागर देख लिया, अब तालत्तलैया कुछ भी न कर सकेंगे। जिसे मेरी बात रुच जाती है, उसे चिंता के बाहर हो जाना चाहिये। जादू चल गया।
अब तू यह भी चिंता मतकर कि पूर्ण समर्पण है या नहीं। एक बीज भी पड़ जाये समर्पण का, तो काफी है। एक बीज ही फिर वृक्ष हो जाता है। एक बीज से ही फिर बहुत बड़ा वृक्ष हो जाता है। वह बीज पड़ गया है। एक बूंद अमृत की काफी है। कोई पूरा सागर अमृत का थोड़े ही पीना पड़ता है। एक बूंद काफी है। और वह बूंद पड़ गई है। वह बूंद न पड़े, तो मुझसे संबंध ही नहीं जुड़ता।
मुझसे थोड़े-से ही लोगों का संबंध जुड़ सकता है। मुझसे संबंध जुड़ना ही अपने आप में एक बड़ी परीक्षा है, एक कसौटी है।
आदमी की उंगलियों में कल्पना जब दौड़ती है
पत्थरों में जान पड़ जाती है
मूर्तियां सप्राण हो कर जगमगाती हैं।
स्पर्श में संजीवनी है।
आदमी का स्पर्श उंगली से उतर कर
पत्थरों की मूर्तियों में वास करता है
मूर्तियां जीवित बनी रहतीं हजारों साल तक,
बस, यही लगता, किसी ने आज ही इनको छुआ है।
और इस कारण बहुत-सी वस्तुएं प्राचीन युग की
खुशनुमा हैं, मोहनी हैं।
क्योंकि वे हैं आज भी
गर्मी लिये उन उंगलियों की
था जिन्होंने एक दिन उनको छुआ आवेश में।
मैं जिसे छू रहा हूं, उसे आवेश में छू रहा हूं। मैं आविष्ट हूं। जो मेरे पास संन्यस्त हो रहा है वह भी आविष्ट हो रहा है। यह एक जादू के जगत में दीक्षा है। जो झुकेगा, अंजुली भरेगा। जरा-सा पी लेगा यह जल, फिर कभी उसकी प्यास न उठेगी।
जीसस एक सांझ एक कुएं पर रुके। कुएं पर भरती थी एक स्त्री जल। उन्होंने उस स्त्री से कहा : मुझे प्यास लगी है, मुझे थोड़ा पानी दोगी? उस स्त्री ने जीसस की तरफ देखा। वह स्त्री अत्यंत दीन-हीन स्त्री थी। छोटी जाति की स्त्री थी। उसने देखा कि जीसस छोटी जाति के नहीं हैं। उनके कपड़े-लत्ते, उनका ढंग, उनका चेहरा...। उसने कहा : क्षमा करें! राही, शायद तुम्हें पता नहीं कि मैं बहुत गरीब, दीन-हीन, छोटी जाति की स्त्री हूं। आपकी जाति के लोग मेरा छुआ पानी नहीं पीते।
जीसस ने कहा : तू फिकिर छोड़! तू मुझे पानी पिला। और, मैं भी तुझे पानी पिलाऊंगा।
उस स्त्री ने कहा : आप भी मुझे पानी पिलाएंगे! थोड़ी चौंकी। उसने कहा : न तो डोर है आपके पास, न आपके पास बाल्टी है। आप मुझे कैसे पानी पिलाएंगे? और आप मुझे पानी पिला सकते हैं तो फिर मुझसे क्यों पानी मांगते हैं?
जीसस ने कहा : तेरा पानी और, मेरा पानी और। तू मुझे पानी पिला। लेकिन, तेरा पानी ऐसा है कि घड़ी भर बाद फिर प्यास लग आएगी। मैं भी तुझे पानी पिलाऊंगा। लेकिन मेरा पानी ऐसा है कि फिर तुझे कभी प्यास न लगेगी।
और कहते हैं, उस स्त्री ने जीसस की आंखों में झांका और जीसस की हो गई। उन आंखों में पी लिया उसने जल। मिल गया उसे अमृत।
झांको मुझमें, संन्यास का इतना ही तो अर्थ है कि मेरे करीब आ सको, कि मैं अपनी आविष्ट अंगुलियों से तुम्हें छू सकूं, कि जो मुझे घटा है उसका थोड़ा संस्पर्श तुम्हें भी हो जाये, कि तुम्हारी वीणा को थोड़ा झंकार दूं। एक बार बज जाये राग तो फिर कभी कोई और राग न तो उसके ऊपर है, न कभी था, न हो सकता है।

सहज योग--(प्रवचन--17)