अस्तित्व के साथ जियो
और चीजों को खुद
अपने आप घटने दो।.....♡
यदि कोई तुम्हारा
सम्मान करता है,
तो यह उसका ही निर्णय है,
तुम्हारा उससे कोई संबंध नही।
यदि तुम उससे अपना
संबंध जोड़ते हो,
तो तुम असंतुलित और
बेचैन हो जाओगे,
और यही कारण है कि
यहाँ हर कोई मनोरोगी है।
और तुम्हारे चारों तरफ घिरे
बहुत से लोग तुमसे यह
अपेक्षाएँ कर रहे हैं कि
तुम यह करो, वह मत करो।
इतने सारे लोग और
इतनी सारी अपेक्षाएँ और
तुम उन्हे पूरा करने की
कोशिश कर रहे हो।
तुम सभी लोगों और
उनकी सभी अपेक्षाओं को
पूरा नही कर सकते।
तुम्हारा पूरा प्रयास
तुम्हे एक गहरे असंतोष से
भर देगा और कोई भी
संतुष्ट होगा ही नही।
तुम किसी को संतुष्ट
कर ही नही सकते,
केवल यही संभव है कि
केवल तुम स्वयम् ही
संतुष्ट हो जाओ।
और यदि तुम अपने से
संतुष्ट हो गये,
तब थोड़े से लोग
तुमसे संतुष्ट होंगे,
लेकिन इससे तुम्हारा
कोई संबंध न हो।
तुम यहाँ किन्ही और लोगों की
अपेक्षाओं को पूरा करने,
उनके नियमों और नक्शों के
अनुसार उन्हे संतुष्ट
करने के लिये नही हो।
तुम यहाँ अपने अस्तित्व को
परिपूर्ण जीने के लिये आये हो।
यही सभी धर्मों में
सबसे बड़ा और पूर्ण धर्म है कि
तुम अपने होने में
परिपूर्ण हो जाओ ।
यही तुम्हारी नियति या मंजिल है,
इससे च्युत नही होना है।
इससे बढ़कर और
कुछ मूल्यवान नही।
किसी का अनुगमन और
अनुसरण न कर
अपने अन्त: स्वर को सुनो।
एक बार भी यदि तुमने
अपने अन्त: स्वर का
अनुभव कर लिया,
तो फिर नियमों और सिद्धाँतों की
कोई जरूरत रहेगी ही नही।
तुम स्वयम् अपने आप में ही
एक नियम बन जाओगे।
ओशो.....♡
10/21/2016
Osho
Osho
अपने आनन्द से जीओ ।
इतना ही पर्याप्त होगा कि, तुम किसी दुसरे के आनन्द मे बाधा न बनो ।
इतना ही पर्याप्त होगा कि, तुम अपने आनन्द का नृत्य नाचो और अपना गीत गाओ ।
हो सकता है तुम्हारे आनन्द की तरंग दुसरों को लग जाये और वे भी आनन्दित हो जाये ।
थोडी गुलाल तुमसे उडे और वे भी लाल हो जाए ।
थोडा रंग तुमसे छिटके और वे भी रंग जाय ।
तुमने सेवा की, ऐसा सोचना मत ।
कोयल गाती है । तुम क्या सोचते हो- कवियो की सेवा कर रही है,
कि लिखो कविताए ! देखो मै गा रही हु ! जागो कवियो !
उठाओ अपनी कलमे, लिखो कविताए ! मै आ गयी सेवा करने को फिर ।
कि पपीहा पुकारता है, कि संतो जागो ! कि देखो मै पीय को पुकार रहा हु ।
तुम भी पुकारो ! मै तुम्हारी सेवा करने आ गया ।
तुम इस जगत मे देखते हो कि कौन किसकी सेवा कर रहा है ?
कोयल गीत गा रही है – अपने आनन्द से ।
पपीहा पुकार रहा है – अपने रस मे विमुग्ध हो ।
फूल खिले है- अपने रस से ।
चॉद तारे चलते है अपनी उर्जा से ।
तुम भी तो अपने मे जीओ.......
ओशो