जो बदल जाये वह आनंद कैसा । जो क्षणीक है ।अनात्मा की और भागने वाले ही निर्धन होते है ।
उन्हें ब्रह्म का ज्ञान नहीं होता ।
इसलिए वे ब्रह्मण भी नहींहो सकते ।
जो बदल जाए वह आनंद कैसा।
जो क्षणिक है अस्थायी है ।
वह आनंद कैसा ।
में तो उस आनंद मैं रमा रहता हु जो स्थायी है।
तुम जिस आनंद के पिछे भाग रहे थे वह अस्थायी था ।मेरा आनंद इससे भिन्न है जो किसी वस्तु या व्यक्ति द्वारा नहीं मिलता ।इसीलिए मुझसे कोई छीन नहीं सकतातो में जो भोग रहा था वह सच नहीं था?यदि वह सच होता तो तुम आत्म हत्या क्यो कर रहे होते ।
सत को कैसे जाना जाए ?
नश्वर वस्तु ओ का साक्षी बन कर ।सत को जान कर ।जो अपरिवर्तनीय है ।किसी पे विश्वास करतें हो । तो उसी विश्वास का ध्यान करों ।
Upnishad Ganga