4/12/2020

श्री गुरुदेव दत्त

दत्तात्रेय !!! स्वात्मदान करणारे आणि आपल्या नावात पितृ उल्लेख असलेले तसेच आजही ज्यांचा अवतार समाप्त न होता अखंड आहे ,ज्यांचे कोणतेही वाहन नाही मात्र क्षणात कुठेही मनोवेगें जाणारे दत्त महाराज ! . स्मर्तृगामी असे कोणते दैवत आहे ? भक्तांचा गौरव हाच ज्यांचा अभिमान ,भक्तांचा योगक्षेम हीच ज्यांची चिंता अशा देवतेची उपास्य दैवत म्हणून प्राप्ती व्हावी हे आमचे अहोभाग्य .

नित्य गंगा स्नान करणारे ,माहूर येथे निद्रा ,सह्याद्री पर्वतावर आसन ,ध्यानधारणा गाणगापूर तर भस्मधारण धोपेश्वर येथे , संध्यावंदन कऱ्हाड तर कोल्हापूर इथे भिक्षाटन ,पांचाळेश्वरला भोजन तर पंढरपुरी सुगंधलेपन (चंदन अथवा गंधलेपन ) आणि पश्चिम सागरी सायंकाळी अर्घ्यदान हे ज्यांचे नित्य आचरण आहे त्यांना आमचा नमस्कार असो . (थोरल्या महाराजांनी दत्त माहात्म्यात याला विचित्राचरण म्हटले आहे .)

अत्यंत कनवाळू आणि मायेने जवळ घेणाऱ्या ,शरण आलो असे म्हणताच सांभाळ करणाऱ्या अशा या दत्त महाराजांचा भक्तिमार्ग तरी कसा आहे ? त्यांची भक्ती तरी कशी करावी ? तर केवळ स्मरणमात्रें संतुष्ट होणारे आणि जलाभिषेकाने पूजन केले असता संतोष होणारे हे दैवत आहे .इतर काही उपचार नसले तरी काही हरकत नाही . सर्व तिथी ,वार ,ऋतू हे त्यांच्या पूजनाला अनुकूल आहेत आणि त्यांचे पूजन हा भक्तांचा उत्सव असतो अशा दत्त महाराजांना आपण प्रिय होण्यासाठी अधिक काय करावे ? नवविधेच्या कोणत्याही प्रकाराने ते भक्तांना वश होतात आणि भक्तांच्या अगदी क्षुल्लक अशा कामना पूर्ण करण्यास ते झटतात . आपले सर्व भक्त हे त्यांना प्राणप्रिय असतात तेव्हा त्यांच्यावर सर्व चिंता सोडून निर्धास्त व्हावे आणि नमस्कार करून म्हणावे ,श्री गुरुदेव दत्त !!! --- अभय आचार्य

आनंद के प्रकार

|| आनंद के प्रकार ||
[ 1 ] जड़ – जड़ संयोगजन्य :- ये माया के रजोगुण और तमोगुण के संयोग से प्राप्त होते हैं | सांसारिक सभी सुख इसी कक्षा में आते हैं |
[2 ] जड़ – चेतन संयोगजन्य :- यह सतोगुण से प्राप्त होने वाला सुख है | यह ज्ञानियों को होता है | यह समाधि का सुख है , जो आत्मस्वरूप में स्थिति होने पर मिलता है | यह बहुत बड़ा सुख होता है |
[ 3 ] चेतन – चेतन संयोगजन्य :-  [ 1 ] यह दिव्य आनंद होता है , जो भगवान के निर्गुण – निराकार स्वरूप [ ब्रह्म ] की प्राप्ति पर ज्ञानियों को होता है | यह अनंत मात्रा का और अनंत काल के लिए होता है | यह ब्रह्म – ज्ञानियों को अखंड रस स्वरूप मिलता है | यह आत्म –ज्ञान से प्राप्त सुख से करोड़ों गुना अधिक होता है | इसे ब्रह्मानन्द कहते हैं |   
                              [ 2 ] प्रेमानन्द :- यह चेतन – चेतन संयोग से , सगुण –साकार भगवान की प्राप्ति से होता है | यह दिव्यानंद होता है , जो अनंत मात्रा और अनंत काल के लिए होता है | पर ब्रह्मानन्द की तुलना में यह सागर के बराबर और ब्रह्मानन्द गाय के खुर के गड्ढे के बराबर होता है | महाराज जनक , जो सदैव ब्रह्मानन्द में ही लीन  रहते थे , भगवान राम के दर्शन होने पर इतने मुग्ध हो गए कि, भगवान के मुख – कमल  पर  मानो उनकी दृष्टि अटक गई हो ? उन्होने अपने ब्रह्मानन्द को एक क्षण में ही भुला दिया | 
यही दिव्यानंद भक्ति से सिद्ध भक्तों को गोलोक की प्राप्ति होने पर , श्री कृष्ण भगवान के दर्शन होने पर मिलता है | वे वहाँ पर अनंत काल तक यह आनंद भोगते हैं | वे अपनी मर्जी से अथवा भगवान  की इच्छा से अगर पृथ्वी पर लोक कल्याण के लिए आते भी हैं , तो कार्य समाप्ती पर पुन: गोलोक में ही जाते हैं | यहाँ यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सिद्ध – भक्तों को लेने [ मृत्यु होने पर ] भगवान स्वयं आते हैं [ गीता 12/7 ] जबकि साधक भक्तों को लेने भगवान के पार्षद आते हैं | 
|| इति ||

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 **"जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है*तब...महत्वपूर्ण होती है विजय, केवल विजय...**
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 #महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था, युद्धभूमि में यत्र- तत्र योद्धाओं के फ़टे वस्त्र, मुकुट, टूटे शस्त्र, टूटे रथों के चक्के, छज्जे आदि बिखरे हुए थे । वायुमण्डल में पसरी हुई थी घोर उदासी ।

 गिद्ध, कुत्ते, सियारों की उदास और डरावनी आवाजों के बीच उस निर्जन हो चुकी उस भूमि में द्वापर का सबसे महान योद्धा देवब्रत भीष्म पितामह मृत्युशैय्या पर पड़ा सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहा था अकेला...

तभी उनके कानों में एक परिचित ध्वनि शहद घोलती हुई पहुँची "प्रणाम पितामह"
भीष्म के सूख चुके अधरों पर एक मरी हुई मुस्कुराहट तैर उठी...बोले, "आओ देवकीनंदन...स्वागत है तुम्हारा...मैं बहुत देर से तुम्हारा ही स्मरण कर रहा था"

कृष्ण बोले,"क्या कहूँ पितामह...अब तो यह भी नहीं पूछ सकता कि कैसे हैं आप"

भीष्म चुप रहे...!

कुछ क्षण बाद बोले,"पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव...? 
उनका ध्यान रखना, परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है"
कृष्ण चुप रहे...?

भीष्म ने पुनः कहा, "कुछ पूछूँ केशव...? 
बड़े अच्छे समय से आये हो, सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाय"

कृष्ण बोले-कहिये न पितामह...! 
एक बात बताओ प्रभु...! 
तुम तो ईश्वर हो न...

कृष्ण ने बीच में ही टोका,"नहीं पितामह...! मैं ईश्वर नहीं... मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह, ईश्वर नहीं"

भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े बोले, "अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण, सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया, अब तो ठगना छोड़ दे रे..."

कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले,"कहिये पितामह"
भीष्म बोले, "एक बात बताओ कन्हैया...? 
इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या...?"

"किसकी ओर से पितामह...? पांडवों की ओर से...?"

"कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया, पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था...? 

आचार्य द्रोण का वध, दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार, दुःशासन की छाती का चीरा जाना, जयद्रथ के साथ हुआ छल, निहत्थे कर्ण का वध, सब ठीक था क्या...? 
यह सब उचित था क्या...?"

इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह...? 
इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया...?
उत्तर दें दुर्योधन का वध करने वाले भीम,
 उत्तर दें, कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन, 
मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह...!

"अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण...? 

अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है, पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है...! मैं तो उत्तर तुम्हीं से पूछूंगा...? 

कृष्ण..." - "तो सुनिए पितामह...! कुछ बुरा नहीं हुआ, 
कुछ अनैतिक नहीं हुआ...वही हुआ जो हो होना चाहिए"

"यह तुम कह रहे हो केशव...? मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है...? 
यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे गया...?"
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"इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह, पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है...

 हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है...राम त्रेता युग के नायक थे, मेरे भाग में द्वापर आया था...हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह"
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"नहीं समझ पाया कृष्ण...तनिक समझाओ तो...?"
"राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह...? 
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राम के युग में खलनायक भी 'रावण' जैसा शिवभक्त होता था...तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण और कुम्भकर्ण जैसे सन्त हुआ करते थे

...तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे !

उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था... इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया...!

किंतु मेरे युग के भाग में में कंस, जरासन्ध, दुर्योधन, दुःशासन, शकुनी, जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं... उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह...!
पाप का अंत आवश्यक है पितामह, वह चाहे जिस विधि से हो"

"तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव...? 
क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा ? 
और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा...?"
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"भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह...कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा... वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा, नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा...!

"जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह...तब...महत्वपूर्ण होती है विजय, केवल विजय...भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह"
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"क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव...? 
और यदि धर्म का नाश होना ही है, तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है...?"
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"सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह...! ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता, सब मनुष्य को ही करना पड़ता है..
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.आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न...तो बताइए न पितामह, मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या? सब पांडवों को ही करना पड़ा न...? 
यही प्रकृति का विधान है...युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से...यही परम सत्य है"

भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे...!

उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी...उन्होंने कहा- चलो कृष्ण...यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है, कल सम्भवतः चले जाना हो...अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना...कृष्ण"

कृष्ण ने मन में ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले, पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था...

"जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है...!!!"

जय श्री कृष्णा 💖🙏