|| आनंद के प्रकार ||
[ 1 ] जड़ – जड़ संयोगजन्य :- ये माया के रजोगुण और तमोगुण के संयोग से प्राप्त होते हैं | सांसारिक सभी सुख इसी कक्षा में आते हैं |
[2 ] जड़ – चेतन संयोगजन्य :- यह सतोगुण से प्राप्त होने वाला सुख है | यह ज्ञानियों को होता है | यह समाधि का सुख है , जो आत्मस्वरूप में स्थिति होने पर मिलता है | यह बहुत बड़ा सुख होता है |
[ 3 ] चेतन – चेतन संयोगजन्य :- [ 1 ] यह दिव्य आनंद होता है , जो भगवान के निर्गुण – निराकार स्वरूप [ ब्रह्म ] की प्राप्ति पर ज्ञानियों को होता है | यह अनंत मात्रा का और अनंत काल के लिए होता है | यह ब्रह्म – ज्ञानियों को अखंड रस स्वरूप मिलता है | यह आत्म –ज्ञान से प्राप्त सुख से करोड़ों गुना अधिक होता है | इसे ब्रह्मानन्द कहते हैं |
[ 2 ] प्रेमानन्द :- यह चेतन – चेतन संयोग से , सगुण –साकार भगवान की प्राप्ति से होता है | यह दिव्यानंद होता है , जो अनंत मात्रा और अनंत काल के लिए होता है | पर ब्रह्मानन्द की तुलना में यह सागर के बराबर और ब्रह्मानन्द गाय के खुर के गड्ढे के बराबर होता है | महाराज जनक , जो सदैव ब्रह्मानन्द में ही लीन रहते थे , भगवान राम के दर्शन होने पर इतने मुग्ध हो गए कि, भगवान के मुख – कमल पर मानो उनकी दृष्टि अटक गई हो ? उन्होने अपने ब्रह्मानन्द को एक क्षण में ही भुला दिया |
यही दिव्यानंद भक्ति से सिद्ध भक्तों को गोलोक की प्राप्ति होने पर , श्री कृष्ण भगवान के दर्शन होने पर मिलता है | वे वहाँ पर अनंत काल तक यह आनंद भोगते हैं | वे अपनी मर्जी से अथवा भगवान की इच्छा से अगर पृथ्वी पर लोक कल्याण के लिए आते भी हैं , तो कार्य समाप्ती पर पुन: गोलोक में ही जाते हैं | यहाँ यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सिद्ध – भक्तों को लेने [ मृत्यु होने पर ] भगवान स्वयं आते हैं [ गीता 12/7 ] जबकि साधक भक्तों को लेने भगवान के पार्षद आते हैं |
|| इति ||
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