भक्ति एवं मुक्ति -->
वेदो ने मुक्ति के चार भेद बताएँ है । किन्तु सबमेँ प्रभु की भक्ति ही को प्रधान माना गया है । इसके सामने सभी तुच्छ है ।
पहली मुक्ति " सालोक्य " प्रदान करने वाली ।
दूसरी मुक्ति "सारुप्य" देने वाली है ।
तीसरी मुक्ति "सामीप्य" प्रदान करने वाली ।
चौथी मुक्ति "निर्वाण" पद पर पहुँचाने वाली है ।
किन्तु भक्तपुरुष परमप्रभु परमात्मा की सेवा छोड़कर इन मुक्तियोँ की इच्छा नहीँ करते । वे शिवत्व , विष्णुत्व ,अमरत्व , और ब्रह्मत्व तक भी अवहेलना करते है ।
क्योँकि मुक्ति सेवा रहित होती है जबकि भक्ति मेँ निरन्तर सेवाभाव का उत्कर्ष होता रहता है ।
यही भक्ति एवं मुक्ति मेँ भेद है।