2/12/2020

quotes 6

 ज्ञानी और पंडित में भेद है। ज्ञानी वह है, जिसने जाना। पंडित वह है, जो उधार बातों को दोहरा रहा है।
पंडित के हाथ में धर्म पड़ जाता है कि बस उसकी हंसी खो जाती है, मुस्कुराहट खो जाती है। जिस दिन धर्म की हंसी खो जाती है, उसका नृत्य खो जाता है, पैर में घूंघर नहीं बजते, हाथ में बांसुरी नहीं रह जाती--बस उसके बाद फिर लाश है। फिर पूजो! फिर करते रहो हवनऱ्यज्ञ, हाथ कुछ भी न लगेगा, बस राख ही राख है। फिर राख का ही प्रसाद है। फिर राख को तुम चाहे विभूति कहो, जो तुम्हारी मर्जी। तुम्हारे विभूति कहने से राख कुछ विभूति नहीं हो जाती। मगर कैसे-कैसे लोग हैं, राख को विभूति कह रहे हैं! राख को सिर पर डाल रहे हैं, माथे पर लगा रहे हैं और सोच रहे हैं कि बड़ा पुण्य-कर्म किया होगा पिछले जन्मों में। इससे यह राख माथे पर लगी, सिर पर पड़ी। पुण्य-कर्म से राख बरसती है? न मालूम किन पापों का फल भोग रहे हो! लेकिन कहते हो--विभूति! अच्छे-अच्छे नाम व्यर्थ की बातों को हम दे लेते हैं।
नहीं रंजन, यह कोई लत नहीं है। हंसो, जी भर कर हंसो! और हंसी के संबंध में कंजूसी मत करना। लोग बहुत कंजूस हो गए हैं, हर चीज में कंजूस हो गए हैं। उन चीजों के संबंध में भी कंजूस हो गए हैं, जिनमें तुम्हारा कुछ खोता नहीं। उन चीजों में भी कंजूस हो गए हैं जिनमें कौड़ी नहीं लगती। उन चीजों तक में कंजूस हो गए हैं, जिनको बांटने से वे चीजें बढ़ती हैं, घटती नहीं।
जीवन का एक अदभुत नियम समझो। बाहर को जगत की जितनी चीजें हैं, बांटोगे तो घट जाएंगी। भीतर के जगत की जितनी चीजें हैं, बांटो तो बढ़ जाएंगी। भीतर का अर्थशास्त्र अलग। बाहर ऐसा करोगे तो अनर्थ हो जाएगा। बाहर का अर्थशास्त्र अलग है।
💃💃💃💃 प्रीतम छवि नैनन बसी  # 16 💃💃💃💃💃🎶🎶🎶 ओशो 🙏🙏

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