9/14/2021

post 24

प्रेम और आनन्द में यदि रोना आए तो यह अति उत्तम है। ऐसे आँसू अत्यंत मूल्यवान होते हैं। तुम्हारे हृदय की कोमलता के विस्तृत होने का यह प्रतीक है। यदि आहत होने के कारण रोना आए तो अपने अंदर के शौर्य को जगाओ। जबकि बहुधा  अपने-आप पर आप तरस खाते हुए पाए जाते हैं। स्वतः को दीन मानना और स्वतः को कोसना आदि वृत्तियों का आध्यात्मिक मार्ग में कोई स्थान नहीं है। अतः इन दोनों का त्याग करो।  यदि अपने-आप को कोसते रहोगे तो स्वतः को पहचानने से वंचित रह जाओगे।

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

 Pranam sadguru 🙏🙏

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