मनुष्य परमात्मा की यात्रा पर दो ढंग से निकल सकता है। एक तो अकड़ से, कि पाकर रहूंगा; संकल्प से; वह अहंकार की ही यात्रा है। वह अहंकार का ही सूक्ष्म रूप है। और दूसरा मार्ग है कि अपने को मिटा दूंगा, तेरी राह पर अपने को मिटा दूंगा, तेरी राह पर गर्दे—गुबार होकर मिट जाऊंगा; वह समर्पण का मार्ग है। और जो समर्पण करने को राजी है, उनके हाथ में वह विराट ऊर्जा लग जाती है जो प्रेम में छिपी है।
अथातो भक्ति जिज्ञासा-31
ओशो
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