सबसे बड़ा नशा ➖ध्यान्
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कुछ तो मेरा खयाल करो, मैं नशे में हूं .
तुम मेरे आस-पास रहो, मैं नशे में हूं
डरता हूं धूप वक्त की झुलसा न दे मुझे
तुम गेसुओं के साए करो, मैं नशे में हूं
अब मुझको कोई शर्ते-अदब याद नहीं है
दुनिया को मुझसे दूर रखो, मैं नशे में हूं
मुझको कहां है होश कि खुद भी सम्हल सकूं
तुम तो सम्हल-सम्हल के चलो, मैं नशे में हूं‼
ये क्या कि दो ही घूंट पीए और बहक उठे
बदनाम मयकशी न करो, मैं नशे में हूं
जब तक भी होश में था, बड़ा खाकसार था
अब मेरा एहतराम करो, मैं नशे में हूं
कुछ तो मेरा खयाल करो, मैं नशे में हूं ‼
तुम पूछते हो, मेरा काम क्या है। मेरा काम एक ही: तुम्हारा नशा तोड़ना। और तुम्हारा यह नशा टूट जाए तो तुम्हें उस नशे की तरफ ले चलना, जो पीओ एक बार तो फिर कभी टूटता नहीं।
अभी तुम बहुत तरह के नशों में जी रहे हो--धन का, पद का, प्रतिष्ठा का। ये सब नशे छोड़ देने हैं। और एक नशा पी लेना है--ध्यान का, समाधि का। एक शराब समाधि की। और एक घूंट काफी है। एक घूंट सागर के बराबर है। एक घूंट पीया कि नशा फिर कभी उतरता ही नहीं। और नशा भी ऐसा नशा कि बेहोशी भी आती है और होश भी आता है। साथ-साथ आते हैं, युगपत आते हैं। एक तरफ होश, एक तरफ बेहोशी। और तभी मजा है। जब बेहोशी के बीच होश का दीया जलता है, जब तुम नाचते भी हो मस्ती में और भीतर कोई ठहरा भी होता है, जब बाहर तो तुम्हारा नृत्य मीरा का होता है और भीतर तुम्हारा ठहराव बुद्ध का होता है--तब मजा है। तब जिंदगी आनंद है, तब जीवन उत्सव है।
मेरी दृष्टि में, उस क्षण ही अनुभव होता है कि परमात्मा है। उसके पहले लाख मानो, मानने से कुछ भी नहीं होता है। उस क्षण जाना जाता है। और जिसने जाना उसके जीवन में सौभाग्य की घड़ी आ गई।
जो मेरे पास इकट्ठे हैं, उनको पुराने नशे से अलग करना है और नया नशा दे देना है। यह भी कोई काम नहीं। यह भी मेरी मौज, यह भी मेरा मजा, यह भी मेरी मस्ती। इसलिए किसी का नशा टूट जाए तो ठीक; न टूटे तो मैं नाराज नहीं। टूट जाए तो शुभ; न टूटे उसकी मर्जी।
आज इतना ही।
ओशो
आपुई गई हिराय
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