भाग- 106 आओ तांत्रिक बनें ।
विधि :
"प्रत्येक वस्तु ज्ञान के द्वारा ही देखी जाती है। ज्ञान के द्वारा ही आत्मा
क्षेत्र में प्रकाशित होती है। उस एक को ज्ञाता और ज्ञेय की भांति देखो।"
जब भी तुम कुछ जानते हो, तुम उसे ज्ञान के द्वारा, जानने के द्वारा जानते हो। ज्ञान की क्षमता के द्वारा ही कोई विषय तुम्हारे मन में पहुंचता है। तुम एक फूल को देखते हो; तुम जानते हो कि यह गुलाब का फूल है। गुलाब का फूल बाहर है और तुम भीतर हो। तुमसे कोई चीज गुलाब के फूल तक पहुंचती है, तुमसे कोई चीज फूल तक आती है। तुम्हारे भीतर से कोई ऊर्जा गति करती है, गुलाब तक आती है, उसका रूप, रंग और गंध ग्रहण करती है और लौट कर तुम्हें खबर देती है कि यह गुलाब का फूल है।
सब ज्ञान, तुम जो भी जानते हो, जानने की क्षमता के द्वारा तुम पर प्रकट होता है। जानना तुम्हारी क्षमता है; सारा ज्ञान इसी क्षमता के द्वारा अर्जित किया जाता है।
लेकिन यह जानना दो चीजों को प्रकट करता है—ज्ञात को और ज्ञाता को।
जब भी तुम गुलाब के फूल को जानते हो, तब अगर तुम ज्ञाता को, जो जानता है उसको भूल जाते हो, तो तुम्हारा ज्ञान आधा ही है।
तो गुलाब को जानने में तीन चीजें घटित हुईं.
ज्ञेय यानी गुलाब,
ज्ञाता यानी तुम और दोनों के बीच का संबंध यानी ज्ञान।
तो जानने की घटना को तीन बिंदुओं में बांटा जा सकता है :
ज्ञाता, ज्ञेय और ज्ञान।
ज्ञान दो बिंदुओं के बीच, ज्ञाता और ज्ञेय के बीच सेतु की भांति है।
सामान्यत: तुम्हारा ज्ञान सिर्फ ज्ञेय को, विषय को प्रकट करता है; और ज्ञाता, जानने वाला अप्रकट रह जाता है। सामान्यत: तुम्हारे ज्ञान में एक ही तीर होता है; वह तीर गुलाब की तरफ तो जाता है, लेकिन वह कभी तुम्हारी तरफ नहीं जाता। और जब तक वह तीर तुम्हारी तरफ भी न जाने लगे तब तक ज्ञान तुम्हें संसार के संबंध में तो जानने देगा, लेकिन वह तुम्हें स्वयं को नहीं जानने देगा।
ध्यान की सभी विधियां जानने वाले को प्रकट करने की विधियां हैं।
अभी तुम मुझे सुन रहो हो। जब तुम मुझे सुन रहे हो तो तुम दो ढंगों से सुन सकते हो। एक कि तुम्हारा मन सिर्फ मुझ पर केंद्रित हो। तब तुम सुनने वाले को भूल जाते हो। तब बोलने वाला तो जाना जाता है, लेकिन सुनने वाला भुला दिया जाता है। गुरजिएफ कहता था कि सुनते हुए बोलने वाले के साथ साथ सुनने वाले को भी जानो।
तुम्हारे ज्ञान को द्विमुखी होना चाहिए; वह एक साथ दो बिंदुओं की ओर, ज्ञाता और ज्ञेय दोनों की ओर प्रवाहित हो। उसे एक ही दिशा में, सिर्फ विषय की दिशा में नहीं बहना चाहिए।
यह सूत्र तुम पर साक्षी को प्रकट कर देगा।
‘प्रत्येक वस्तु ज्ञान के द्वारा ही देखी जाती है। ज्ञान के द्वारा ही आत्मा क्षेत्र में प्रकाशित होती है। उस एक को ज्ञाता और ज्ञय की भांति देखो।‘
यदि तुम अपने भीतर उस बिंदु को देख सके, जो ज्ञाता और ज्ञेय दोनों है, तो तुम आब्जेक्ट और सब्जेक्ट दोनों के पार हो गए। तब तुम पदार्थ और मन दोनों का अतिक्रमण कर गए; तब तुम बाह्य और आंतरिक दोनों के पार हो गए।
तब तुम उस बिंदु पर आ गए जहां ज्ञाता और ज्ञेय एक हैं; उनमें कोई विभाजन नहीं है।
मन के साथ विभाजन है;
साक्षी के साथ विभाजन समाप्त हो जाता है।
साक्षी के साथ तुम यह नहीं कह सकते कि कौन ज्ञेय है और कौन ज्ञाता है; वह दोनों है।
लेकिन इस साक्षी का अनुभव होना चाहिए; अन्यथा वह दार्शनिक ऊहापोह बन कर रह जाता है। इसलिए इसे प्रयोग करो।
तुम गुलाब के फूल के पास बैठे हो, उसे देखो। पहला काम ध्यान को एक जगह केंद्रित करना है, गुलाब के प्रति पूरे ध्यान को लगा देना है—जैसे कि सारी दुनिया विलीन हो गई हो और सिर्फ गुलाब बचा हो
गुलाब पर एकाग्र होना पहला कदम है। अगर तुम गुलाब पर एकाग्र नहीं हो सकते तो तुम ज्ञाता की तरफ गति नहीं कर सकते; क्योंकि तब तुम्हारा मन सदा भटक भटक जाता है। इसलिए ध्यान की तरफ जाने के लिए एकाग्रता पहला कदम है। तब सिर्फ गुलाब बचता है और सारा संसार विलीन हो जाता है। अब तुम भीतर की तरफ गति कर सकते हो; अब गुलाब वह बिंदु है जहां से तुम गति कर सकते हो। अब गुलाब को देखो और साथ ही स्वयं के प्रति, ज्ञाता के प्रति जागरूक होओ।
अगर तुम प्रयत्न करते ही रहे, करते ही रहे, तो देर अबेर एक क्षण आएगा जब तुम अपने को दोनों के बीच में पाओगे। ज्ञाता होगा, मन होगा, गुलाब होगा और तुम ठीक मध्य में होगे, दोनों को देख रहे होंगे।
वह मध्य बिंदु, वह संतुलन का बिंदु ही साक्षी है।
और एक बार तुम यह जान गए तो तुम दोनों हो जाओगे। तब गुलाब और मन, ज्ञेय और ज्ञाता, तुम्हारे दो पंख हो जाएंगे।
तब आब्जेक्ट और सब्जेक्ट दो पंख हैं और तुम दोनों के केंद्र हो।
तब वे तुम्हारे ही विस्तार हैं।
तब संसार और भगवत्ता दोनों तुम्हारे ही विस्तार हैं। तुम अपने अस्तित्व के केंद्र पर पहुंच गए। और यह केंद्र साक्षी मात्र है।
‘उस एक को ज्ञाता और ज्ञेय की भांति देखो।’
ओशो
तंत्र-सूत्र- ( प्रवचन-61 )
( शिव और देवी पार्वती संवाद )
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