11/16/2020

ध्यान

✨मेरा  जोर  ध्यान  पर  है। 
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ध्यान का अर्थ है: स्वार्थ, परम स्वार्थ, आत्यंतिक स्वार्थ! क्योंकि ध्यान से ज्यादा निजी कोई बात नहीं है इस जगत में। ध्यान का कोई सामाजिक संदर्भ नहीं। ध्यान का अर्थ है: अपने एकांत में उतर जाना, अकेले हो जाना, मौन, शून्य, निर्विचार, निर्विकल्प। लेकिन उस निर्विचार में, उस निर्विकल्प में जहां आकाश बादलों से आच्छादित नहीं होता--अंतर-आकाश--भीतर का सूरज प्रकट होता है। सब जगमग हो जाता है। सब रोशन हो उठता है। फिर तुम्हारे भीतर प्रेम के फूल खिलते हैं, आनंद के झरने फूटते हैं, रस की धाराएं बहती हैं। फिर उलीचो, फिर बांटो। बांटना ही पड़ेगा। और उस बांटने को मैं परोपकार कहता हूं।

और जिसके जीवन में ध्यान नहीं है, वह तो दूसरे को सताएगा। सताएगा ही! अपरिहार्यरूपेण सताएगा। क्यों? क्योंकि जो खुद दुखी है, वह दुख ही बांट सकता है। और गैर-ध्यानी दुखी होगा ही, नहीं तो कोई ध्यान तलाशे क्यों?

 अगर बिना ध्यान के जीवन में सुख हो सकता होता, तो सुख कभी का हो गया होता। बिना ध्यान के जीवन में सुख होता नहीं। 

ध्यान के बिना सुख का बीज टूटता ही नहीं, अंकुरण ही नहीं होता। फूल तो लगेंगे कैसे? फल तो आएंगे कैसे? ध्यान तो सुख के बीजों को बोना है। 

🌷ओशो 🌷
 ज्यूं मछली बिन नीर

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