विवेक बुद्धि का सार है | विवेक का अर्थ है, एक प्रकार की सगाजत, एक तरह का होश | कार्य में, विचार में, एक तरह की सावधानी, एक तरह का सतत अवेयरनेस |
आप रास्ते पर चल रहे हैं | चलना यांत्रिक है | चलना आपको पता है कैसे चला जाता है, शरीर चलता चला जाता है | आपको कोई होश रखने की जरूरत नहीं है, कि आप चल रहे हैं, कि पैर उठाया जा रहा है | श्वास ले रहे हैं | श्वास चलती चली जाती है, यांत्रिक है | श्वास के लिए आपको कुछ करने की जरूरत नहीं है | होश बिलकुल आवश्यक नहीं है |
लेकिन आप होशपूर्वक भी श्वास ले सकते हैं | बुद्ध ने अपनी पूरी साधना श्वास और होश के ऊपर आधारित की थी | बुद्ध कहते थे अपने भिक्षुओं को की तुम अगर होशपूर्वक श्वास लेने लगो, तो सब ठीक हो जाएगा |
इतनी सरल बात, और सब ठीक हो जाए | यह सरल ऊपर से दिखती है, भीतर बहुत जटिल है |
होश सरल सी बात है, लेकिन अति कठिन है | बुद्ध कहते हैं, तुम सिर्फ अपनी श्वास को होशपूर्वक लेने लगो, बस | क्या हो जाएगा इतने से ? इतने से सब हो जाता है | क्योंकि भीतर का तत्व जो विवेक है, वह जगने लगता है | वह किसी भी प्रक्रिया के द्वारा जगाया जा सकता है |
कोई भी प्रक्रिया आप होशपूर्वक करने लगे, आपकी बुद्धि सजग होने लगेगी | और जैसे ही बुद्धि सजग होती है, मन शांत होने लगता है, क्योंकि मालिक मौजूद हो गया | नौकर चुपचाप बैठ जाता है; आज्ञा की प्रतीक्षा करने लगता है |
ओशो, कठोपनिषद
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