प्रभु का स्मरण, प्रभु—अस्तित्व की प्रतीति, परमेश्वर है, ऐसा बोध जैसे—जैसे घना होता है, जैसे—जैसे आनंद बनता है, कामनाएं गिरती चली जाती हैं। कामनाओं के गिरते ही मृत्यु गिर जाती है।
जब हृदय की संपूर्ण ग्रंथियां भलीभांति खुल जाती हैं तब वह मरणधर्मा मनुष्य इसी शरीर में अमर हो जाता है बस इतना ही सनातन उपदेश है
यह दूसरी बात है : जब हृदय की संपूर्ण ग्रंथियां भलीभांति खुल जाती हैं.।
कठोपनिषद-प्र-16
ओशो
0 comments:
Post a Comment