10/07/2020

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जो स्वयं मे डुबा, जिसने स्वयं का रसास्वादन कर लिया, उसका कोई सम्मान करे, या अपमान, उसे कोई फ़र्क़ नही पड़ता , वह तो कमलवत् ही रहता है, उसे कुछ भी नही छूता , न सम्मान , न अपमान। जो सम्मान दे , वो उसकी मौज , जो अपमान करे , वो उसकी मौज , दोनों ही स्थिति मे व्यक्ति सम बना रहे, दोनों ही स्थिति मे हृदय से धन्यवाद का भाव प्रकट हो, और व्यक्ति स्वयं पर ही लोट आये, दूसरे पर नही, बस एक डुबकी अंदर की ओर लग जाये ,ऐसी मनो दशा ही जीवन को आनन्दित करती है, और उस परम् तत्व के साक्षात्कारः मे सहायक है।

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