एपीटेक्टस हुआ, एक अदभुत व्यक्ति हुआ।
बीमारी भी आती, दुख भी आता, चिंता आती, तो भी लोग उसे वैसा ही पाते; जैसे जब वह स्वस्थ था, निश्चिंत था, शांत था, सुख था। लोगों ने हर हालत में उसे देखा, लेकिन वैसा ही पाया, जैसा वह था; उसमें कुछ फर्क नहीं देखा कभी भी। कुछ लोग उसके पास गए और कहा कि एपीटेक्टस, अब तो मौत करीब आती है, तुम बूढ़े हो गए।
तो उसने कहा, जरूर आए, देखेंगे! उसने कहा, जरूर आए, देखेंगे! मौत को देखोगे?
उसने कहा, जब सब चीजें देखने की ताकत आ गई तो मौत को देखने की ताकत भी आ गई। वह तो जिंदगी को ही जो नहीं देख पाते, वही मौत को नहीं देख पाते। जो जिंदगी को देख लेता है, वह मौत को भी देख लेता है। एपीटेक्टस ने कहा, देखेंगे! बड़ा मजा आएगा। क्योंकि बड़े दिन हो गए, तब से मौत को नहीं देखा! बहुत समय हो गया, तब से मौत को नहीं देखा!
मौत आई है तो कई लोग इकट्ठे हो गए हैं। एपीटेक्टस मर रहा है लेकिन घर में संगीत बजाया जा रहा है, क्योंकि उसने अपने शिष्यों को, अपने मित्रों को कहा है कि मरते क्षण में मुझे रोकर विदा मत देना! क्योंकि रोकर हम उसको विदा देते हैं, जो जानता नहीं था। मुझे तुम हंस कर विदा देना, क्योंकि मैं जानता हूं। क्योंकि मैं मर ही नहीं रहा हूं। मैंने देखना सीख लिया है, हर स्थिति को देखना सीख लिया है। और जिस स्थिति को मैंने देखना सीखा, मैं उसी के बाहर हो गया उसी वक्त।
अगर मैंने दुख को देखा, मैं दुख के बाहर हो गया। अगर मैंने सुख को देखा, मैं सुख के बाहर हो गया। अगर मैंने जीवन को देखा तो मैं जीवन के बाहर हो गया। तो तुमसे मैं कहता हूं कि मैं देखने की कला जानता हूं, मैं मौत को देख लूंगा और मौत के बाहर हो जाऊंगा। तुम इसकी फिकर ही मत करो। मैं जिस चीज को देखा, उसी के बाहर हो गया। तो मेरे जीवन भर का अनुभव यह है कि देखो और बाहर हो जाओ। मगर हम देख ही नहीं पाते!
इसीलिए इस देश में तत्व-विचार को, फिलासफी को जो नाम दिया है, वह दर्शन का दिया है।
दर्शन का मतलब है: देखने की क्षमता।
दर्शन का मतलब फिलासफी नहीं है।
फिलासफी का मतलब है: विचार का प्रेम। दर्शन का मतलब है: देखने की क्षमता।
ओशो, महावीर मेरी दृष्टि में-१८
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