ध्यान का छोटा सा सूत्र है : अपने भीतर इतनी शांति, कि विचार की कोई तरंग भी न उठे। कोई लहर न हो ऐसा सन्नाटा; ऐसा शून्य, जहां बस तुम हो और कुछ भी नहीं है। जहां यह भाव भी नहीं कि मैं हूं। उसी क्षण यह सारा विश्व तुम्हारे ऊपर ईश्वर बन कर बरस पड़ता है।
☆ फिर अमरित की बूंद पडी, ओशो ☆
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