10/08/2020

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*अक्रोधेन जयेत् क्रोधमसाधुं साधुता जयेत् ।*
*जयेत् कदर्यं दानेन जयेत् सत्येन चानृतम्।।*

क्रोध पर विजय (प्रतिकार स्वरूप) क्रोध न कर के ही प्राप्त हो सकती है तथा दुष्टता पर विजय सौम्य स्वाभाव तथा सद्व्यवहार द्वारा ही होती है। कंजूसी की प्रवृत्ति पर विजय दान देने से ही सम्भव होती है और झूठ बोलने के प्रवृत्ति पर सत्यवादिता से ही विजय प्राप्त होती हैं।

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