प्रेमपूर्ण चित्त की अवस्था मे सर्वत्र परमात्मा ही दिखाई पड़ता है, प्रेम परमात्मा की ही अनुभूति है, प्रेमपूर्ण चित्त ही परमात्मा की अनुभूति कर सकता है। जिससे भी प्रेम होगा, उसी मे परमात्मा की छवि दिखाई पड़ेगी। प्रेम पात्र परमात्मा ही दिखाई पड़ेगा। यदि ऐसा नही है, तो फिर प्रेम है ही नही, प्रेम की भ्रांति है।
0 comments:
Post a Comment