तुमने कहा— 'मैं सुखी हूं, तुमने दुख के बीज बो दिये। अब ज्यादा देर न लगेगी, जल्दी ही दुख आ जायेगा, जल्दी ही दुख आ जायेगा। क्योंकि दुख का अर्थ है—वृत्तियों के साथ एक हो जाना। फिर जब दुख आयेगा, तब तुम दुख के साथ एक हो जाओगे। तुम्हारी तकलीफ यह है कि जो भी सामने आता है, तुम उसी के साथ एक हो जाते हो; जो भी दिखाई पड़ता है, उसमें तुम देखनेवाले नहीं रह जाते हो, भोक्ता हो जाते हो। दुख आया तो रोते हो, छाती पीटते हो; सुख आया तो नाचने—कूदने लगते हो। सुख भी बाहर से आता है, दुख भी बाहर से आता है और तुम्हारे भीतर जाने का कोई उपाय नहीं। लेकिन तुम ही अपने हाथ से सुख—दुख के साथ जुड़कर सुख—दुख भोग लेते हो। जैसे ही कोई व्यक्ति मन के पार गया, उसे फिर दिखाई पड़ेगा कि सब मंदिर के बाहर ही हो रहा है, भीतर कुछ आता नहीं।
Osho
शिव--सूत्र -(ओशो) प्रवचन--10
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