'*' क्रोध को किसी अन्य व्यक्ति पर फेंकने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम अपने बाथरूम जा सकते हो, तुम थोड़ी लंबी दूरी तक टहलने जा सकते हो, इसका मतलब है कि तुम्हारे अंदर कुछ ऐसी चीज थी, जिसे तीव्र क्रियाशीलता की जरूरत है, जिससे उसे छोड़ा जा सके। केवल थोड़ी देर तक जॉगिंग करो और तब तुम्हें अनुभव होगा कि वह मुक्त हो गई। या एक तकिया लेकर उसे पीटना शुरू करो, तकिए के साथ लड़ना शुरू करो, तकिए को पीटो, तकिए को काटो, जब तक कि तुम्हारे हाथ और दांत विश्राममय विश्रांत न हो जाएं। पांच मिनट के रेचन से तुम भार-मुक्ति का अनुभव करोगे और एक बार अगर तुम इसे जान लो, तब तुम अपने क्रोध को किसी अन्य पर नहीं फेंकोगे, क्योंकि यह पूर्ण रूप से मूर्खतापूर्ण है।
रूपांतरण के लिए पहली चीज है—क्रोध को अभिव्यक्त करना, लेकिन किसी अन्य व्यक्ति पर नहीं। क्योंकि अगर किसी अन्य व्यक्ति पर तुम इसे अभिव्यक्त करते हो तो तब तुम समग्रता से उसे अभिव्यक्त नहीं कर सकते। तुम उसे जान से मारना चाह सकते हो, तुम उसे दांतों से काटना चाह सकते हो, लेकिन ऐसा करना संभव नहीं है। लेकिन ऐसा एक तकिए के साथ किया जा सकता है।
दूसरी बात जो स्मरण रखनी हैः सजग होना। नियंत्रण के लिए किसी सजगता की आवश्यकता नहीं है, तुम इसे बस एक यांत्रिक क्रिया की तरह करते हो। एक रोबोट की तरह। क्रोध आता है, तब वहां एक यांत्रिक व्यवस्था है—तब तुरंत ही तुम सिकुड़ कर बंद हो जाते हो। यदि तुम सजग होकर निरीक्षण करोगे तो नियंत्रण इतना सरल नहीं हो सकता
समाज कभी तुम्हे सजग होकर निरीक्षण करने की शिक्षा नही देता, क्योकि जब कोई व्यक्ति सजग होकर निरीक्षण करता है तब वह पर्याप्त खुला होता है। वह सजगता का ही एक भाग है, कि कोई एक खुला हुआ है। और यदि तुम किसी चीज का दमन करना चाहते हो और तुम खुले हुए हो, तो यह एक विरोधाभास है, वह चीज बाहर आ सकती है। समाज तुम्हें यह सिखाता है कि कैसे तुम स्वय को भीतर से बन्द कर लो, कैसे तुम स्वय के अन्दर गुफा बना कर स्वय को छिपा लो और किसी भी चीज को बाहर आने के लिए एक छोटी सी खिड़की तक खोलने की भी अनुमति न दो।
लेकिन याद रखोः अगर कोई चीज बाहर नही जा सकती, तब कोई चीज भीतर भी नहीं आ सकेगी। जब क्रोध बाहर नही जा सकता, क्योंकि तुम बन्द हो। अगर तुम एक सुन्दर चट्टान का भी स्पर्श करते हो, तो कुछ भी भीतर प्रवेश नही करता, तुम एक सुन्दर फूल की ओर देखते हो, भीतर कुछ भी प्रवेश नहीं करता, क्योंकि तुम्हारी आंखें बन्द और मुर्दा हैं। तुम किसी व्यक्ति को स्पर्श करते हो, कुछ भी भीतर नहीं जाता, क्योंकि तुम बन्द हो। तुम एक संवेदनाशून्य जीवन जी रहे हो।
सजगता के साथ ही संवेदनशीलता विकसित होती है। नियंत्रण के द्वारा तुम मंद और मुर्दा हो जाते हो। यह नियंत्रण करने का एक यांत्रिक ढंग है। यदि तुम मंद और मुर्दा हो तो कुछ भी तुम्हे प्रभावित नही कर सकता। तुम्हारा शरीर मानो एक बंद किला हो जाता हो। तब तुम्हें कुछ भी प्रभावित नहीं करता, न तो अपमान और न ही प्रेम।
लेकिन इस नियंत्रण की बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ती है, बिल्कुल अनावश्यक कीमत। तब केवल यही पूरे जीवन भर का प्रयास होकर रह जाता है कि कैसे स्वय पर नियंत्रण रखा जाए। और ऐसे ही करते हुए मृत्यु को पाया जाए। नियंत्रण करने का प्रयास ही तुम्हारी सारी जीवन-ऊर्जा को सोख लेता है और ऐसे ही तुम मृत्यु को प्राप्त हो जाते हो।
क्रोध सुन्दर है, सेक्स भी सुन्दर है, पर सुन्दर चीजें भी कुरूप हो सकती हैं। यह तुम पर निर्भर है। अगर तुम इसका तिरस्कार करते हो—तब वे कुरूप हो जाती हैं। और यदि तुम उनका रूपांतरण करते हो, तब वे दिव्य हो जाती हैं।
नियंत्रण नहीं, किसी अन्य पर अभिव्यक्ति भी नहीं, केवल और अधिक सजगता—तब चेतना परिधि से केन्द्र पर आ जाती है।.... '*'
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