3/21/2022

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#ओशो

अस्तित्व के सभी आयाम स्त्रैण और पुरुष में बांटे जा सकते हैं। स्त्री और पुरुष का विभाजन केवल यौन-विभाजन, सेक्स डिवीजन नहीं है। लाओत्से के हिसाब से स्त्री और पुरुष का विभाजन जीवन की डाइलेक्टिक्स है, जीवन का जो द्वंद्वात्मक विकास है, जो डाइलेक्टिकल एवोल्यूशन है, उसका अनिवार्य हिस्सा है।

शरीर के तल पर ही नहीं, स्त्री और पुरुष मन के तल पर भी भिन्न हैं। अस्तित्व जिन-जिन अभिव्यक्तियों में प्रकट होता है, वहां-वहां स्त्री और पुरुष का भेद होगा। लेकिन जो बात ध्यान रखने जैसी है लाओत्से को समझते समय, वह यह है कि पुरुष अस्तित्व का क्षणिक रूप है और स्त्री अस्तित्व का शाश्वत रूप है। जैसे सागर में लहर उठती है। लहर का उठना क्षणिक है। लहर नहीं थी, तब भी सागर था; और लहर नहीं होगी, तब भी सागर होगा। स्त्रैणता अस्तित्व का सागर है। पुरुष का अस्तित्व क्षणिक है।मन के संबंध में भी, जैसे शरीर के संबंध में स्त्री और पुरुष के बुनियादी भेद हैं, वैसे ही मन के संबंध में भी हैं। पुरुष के चिंतन का ढंग तर्क है। इसे ठीक से समझ लेना जरूरी होगा, क्योंकि लाओत्से के सारे विचार का आधार इस पर है। पुरुष के सोचने का ढंग तर्क है, उसका मेथड तर्क है। स्त्री के सोचने का ढंग तर्क नहीं है। उसके सोचने का ढंग बहुत इल्लॉजिकल है, बहुत अतार्किक है। उसे हम अंतर्दृष्टि कहें, इंटयूशन कहें, कोई और नाम दें, लेकिन स्त्री के सोचने के ढंग को तर्क नहीं कहा जा सकता। तर्क की अपनी व्यवस्था है। इसलिए जहां भी पुरुष सोचेगा, वहां गणित, तर्क और नियम होगा। और जहां भी स्त्री सोचेगी, वहां न गणित होगा, न तर्क होगा; सीधे निष्कर्ष होंगे, कनक्लूजंस होंगे। इसलिए स्त्री और पुरुष के बीच बातचीत नहीं हो पाती।।

#ताओ_उपनिषद(भाग-१)#प्रवचन_19


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