मैं दमन का पक्षपाती नहीं हूं। मैं अनुभव का पक्षपाती हूं। जो वासनाएं तुम्हारे मन में बार-बार उठ आती हों, उन्हें पूरा ही कर लो। कुछ वासना से इतना घबड़ाना क्या है? सीढ़ियां हैं, चढ़ जाओ। हां, सीढ़ियों की पकड़ में मत आ जाना। सीढ़ियां किसको पकड़ती हैं? तुम मत पकड़ना सीढ़ियों को, बस। सीढ़ियों ने किसी को कभी पकड़ा हो, ऐसा मैंने सुना नहीं। तो सीढ़ियों से क्या घबराना? रख लो पैर, चढ़ जाओ। गुजर जाओ। मंदिर में पहुंच जाओगे।
वासना की सीढ़ियों से चढ़कर ही कोई प्रार्थना तक पहुंचता है। और विचार की सीढ़ियां चढ़कर ही कोई निर्विचार तक पहुंचता है। और संसार परमात्मा तक जाने का आयोजन है, चुनौती है।
छोड़ो विरोध। छोड़ो दमन। छोड़ो नकार।
अजहू चेत गवार-प्र-6
0 comments:
Post a Comment