मैं अपने संन्यासियों को इससे ज्यादा और कुछ भी नहीं सिखाता हूं--मात्र देखते रहो। जीवन एक लीला है। तुम दर्शक बनो, द्रष्टा बनो। जैसे कोई फिल्म देखता है, नाटक देखता है--बस ऐसे। खुद का जीवन भी यूं देखो, जैसे यह भी एक अभिनय है। यह पत्नी, ये बच्चे, यह परिवार, यह धन दौलत, छोड़ कर भागनी की कोई जरूरत नहीं, सिर्फ इतना जानो--अभिनय है। चलो तुम्हें यह अभिनय करना रहा है। यह बड़ी मंच है पृथ्वी की, इस पर सब अभिनेता हैं। और जिसने अपने को समझा कि मैं कर्ता हूं वही चूक गया। और जिसने अपने को अभिनेता जाना वही पा गया है। पाने की बात दूर नहीं है।
यूं तो वो मेरी रगेजां से भी थे नजदीकतर
ज्यो मछली बिन नीर-8
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