समर्पण का यह अर्थ नहीं है कि तुम कुछ मांगने आये हो; समर्पण करने से मिलेगा, इसलिए समर्पण करते हो। नहीं, समर्पण का अर्थ है: तुम अपनी मांग, तुम अपना मन सब समर्पण करते हो।
तुम कहते हो, "अब मेरी कोई मांग नहीं; अब मेरा कोई मन नहीं; अब जो मर्जी हो! अब जो उस पूर्ण की मर्जी हो, वह होने दो! अब मैं यह न कहूंगा कि मेरी मर्जी पूरी हो।'
मेरी मर्जी पूरी हो, यही अधार्मिक आदमी का लक्षण है ।
जिन सूत्र भाग-1 प्र-26
ओशो
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