आत्मदर्शन जीवन का काव्य है।
जनवरी 1
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हमारे-आपके-सबके जीवन का लक्ष्य
इसी देह से, इन्हीं आंखों से
ब्रह्मविद्या का अनुभव करना ही
होना चाहिए ।
जनवरी 2
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आत्मा का असली रूप और अभी का रूप,
दोनों मिलकर पूर्ण आत्मचिंतन होता है।
ये दो बिंदु निश्चित हुए कि परमार्थ-मार्ग
तैयार हो जाता है।
जनवरी 3
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मां बालक के कानों में
एक ही आवाज गूंजने दे
आत्मा आत्मा आत्मा
जनवरी 4
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जीवन की शुद्धि, अंतर की स्फूर्ति,
विराट में आत्मदर्शन और
आत्मा में विराट की अनुभूति ।
कर्मयोग के साथ-साथ हो सकती है।
इसमें विक्रम जोड़ने पड़ते हैं।
जनवरी 5
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अहं का लोप हुआ कि समाधि लगती है।
परंतु इससे मनुष्य का कार्य समाप्त हुआ,
ऐसा नहीं। बल्कि,
असली कार्य उसके बाद ही शुरू होता है।
मुक्ति यानी व्यापक कार्य का प्रारंभ।
जनवरी 6
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अपने भीतर गुहा में प्रवेश करके
चिंतन करने की आदत सबको होनी चाहिए।
हमें अपने कार्य से,
अपने अहम् से और
अपनी प्रियतम भावना से भी
थोड़ा अलग होना चाहिए।
जनवरी 7
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साधना का उत्साह प्रशिक्षण
वर्धमान होते रहना ही जीवन है।
एक क्षण भी व्यर्थ न जाये,
यह पारमार्थिक साधना में
महत्त्व का सूत्र है।
जनवरी 8
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हम हमारी जिंदगी कितनी मान सकते हैं
ज्यादा-से-ज्यादा 24 घंटे की मान सकते हैं।
उससे ज्यादा मानना न केवल ज्ञान है,
बल्कि पाप है।
जनवरी 9
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आज के दिन यदि हम अपना
सब कुछ भगवान को सौंप दें तो
कल से नहीं, इसी क्षण से
हमारा सब कुछ सुधर जायेगा।
जनवरी 10
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जब मैं बहुत से लोगों को
अपनी ही चिंता में डूबे देखता हूं
तो मुझे दया आती है।
जो खुद की ही चिंता का वहन करना चाहता है,
उसकी चिंता भगवान क्या करेगा
जनवरी 11
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संसार से दूर,
मन की ऊंचाई-नीचाइयों से दूर,
शरीर की आसक्तियों से दूर,
तटस्थ भाव से देखेंगे,
तभी ज्ञान की महान साधना
करने में सफल हो सकेंगे ।
जनवरी 12
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हरि आगे है,
हरि पीछे है।
जहां हमारी शक्ति टूटेगी,
जहां वह प्रकट होगा।
जनवरी 13
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