शिक्षक और गुरु में फर्क है। शिक्षक आप को कुछ देता है, गुरु आपसे कुछ छिन लेता है। शिक्षक आप को भरता है, गुरु आपको खाली करता है। शिक्षक आप को सूचनाएं देता है, गुरु, आपके पास जो अहंकार है, उस अहंकार का जो ज्ञान है तथाकथित, उसको छीन लेता है। शिक्षक आप को आजीविका देता है, गुरु आपको जीवन।
आजीविका देनी हो तो आपको कुछ सिखाना पड़ता है। गणित है, इतिहास है, भूगोल है, साइंस, यह कुछ सिखाना होता है। और अगर ज्ञान देना हो, तो आपने जो सिखा है उसे अनसिखाना होता है। उसे मिटाना होता है।
स्कूल, कॉलेज, विश्विद्यालय में जो हैं, वह शिक्षक हैं। गुरु खो गया है।
इसलिए शास्त्रों ने कहा है कि गुरु मृत्यु रुप है, वह मार डालता है। वह आपको मिटा डालता है। और जब आप वापस लौटतें हैं तो आपका पुनर्जन्म हो गया होता है। आप नये होकर, द्विज होकर, ट्वाइस बार्न होकर लौटते हैं। एक गर्भ मां का है और एक गर्भ गुरु का भी है।
मृत्यु गुरु है। अगर आप मरना सिख जाएं तो आप सब पा जाएंगे, जो पाने योग्य है। यहां मैं आपको भी मृत्यु के हांथ मे दे देना चाहूंगा। और चाहूंगा कि सब तरफ से मृत्यु आपको घेर ले, और आपके भीतर जो भी मर सकता है वह मर हीं जाए। और जो नहीं मर सकता, जिसको मारने का मृत्यु के पास कोई उपाय नहीं है, वही केवल आपके भीतर जगमगाता हुआ बचे। जो कूड़ा - करकट है वह जल जाए, जो स्वर्ण है निखर आए। इस अग्नि से आपको गुजरना हीं होगा। * ओशो * कठोपनिषद।
( संकलन - स्वामी जीवन संगीत )
सभी मित्रों मे मेरा सादर नमन। जय ओशो।
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