8/10/2017

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*_यहाँ विवाहित भी दुःखी है और अविवाहित भी !_*

*प्रश्न - भगवान!*
*मैं विवाह करने ही वाली थी कि मेरा होने वाला पति लापता हो गया है। हैं बहुत दुखी हूं। सांत्वना की तलाश में आपके द्वार आई हूं।*

*_ओशो_* :- *कमला!नाचो!*
*पति समय पर लापता हो गया-उलझन बची, झंझट बची। पीछे बहुत पछतावा होता।*
लेकिन आदमी का मन ऐसा है कि जो नहीं है उसमें आकर्षण है और जो है उसमें विकर्षण।
गरीब सोचते हैं अमीर हो जाएं। अज्ञानी सोचते हैं ज्ञानी हो जाएं! भोगी सोचते हैं त्यागी हो जाएं। अविवाहित सोचते है विवाहित हो जाएं। विवाहित सोचते हैं मर जाएं, कैसे मर जाएं, कब मर जाएं।
जो नहीं है उसकी तरफ दौड़ बनी रहती है।

तू बच गयी! भगवान का हाथ रहा होगा। नहीं तो पति कुछ ऐसे लापता नहीं होते। सदभाग्य है। अब तू कहती है सांत्वना दो। सांत्वना देने का तो अर्थ हुआ कि पहले मैं यह मान लूं कि तेरा जो दुख है वह दुख है। उसे मैं दुख नहीं मान सकता। क्योंकि जिनके विवाह हो गये हैं उनको सुख कहा है?

*जरा चारों तरफ आंख उठाकर विवाहितों को देख। एक झंझट बची, एक व्यर्थ का उपद्रव बचा। उपद्रवों में से जाकर भी निकलना तो पड़ता ही है। निकलना मुश्किल होता जाता है, क्योंकि जाल उलझता जाता जै। पति अकेले तो नहीं आते, मुसीबतें अकेले तो नहीं आतीं। फिर बाल-बच्चे आते हैं। इसलिए तो कहा है ज्ञानियों ने : मुसीबतें अकेली नहीं आती। पति आए, फिर बाल-बच्चे आए…! फिर उस रिश्तेदार हैं और सास और ससुर और न मालूम क्या-क्या आएगा…! फिर उस सब में से, जंगल में से निकलना मुश्किल हो जाएगा। पति तुझे बचा गये। अनुग्रह मान, धन्यवाद दे। जन्म- जन्म का साथ होगा तेरा उनसे! इस बार कृपा कर गये।*

*सांत्वना किस बात की? कुछ गंवाया थोड़े ही तूने; कुछ पाया! चल इस बहाने यहां आ गयी। यह भी कुछ कम है? कौन जाने इसी बहाने जीवन मैं क्रांति हो जाए! तू कहती है कि मैं बहुत दुखी हूं। तू सोचती है, जो विवाहित हैं वे सुखी हैं ?*

अपने आसपास जरा आंख खोलकर देखो। धन है तो लोग दुखी हैं, धन नहीं है तो लोग दुखी हैं। पद है तो लोग दुखी हैं, पद नहीं है तो लोग दुखी हैं। विवाहित हैं तो दुखी हैं, अविवाहित हैं तो दुखी हैं। दुख का कोई संबंध बाहर नहीं है, बाहर की परिस्थिति से नहीं है।

*_ओशो_*

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