8/23/2017

प्रेम ,ध्यान ,समाधी

मौत और जीवन एक हीं घटना के दो हिस्से है - अन्योन्याश्रित है। एक दूसरे पर निर्भर है। तो जब ' पर , बिल्कुल छूट जाता है, तो स्वयं की उसकी निजता मे अंतत: स्वयं का होना भी मिट जाता है। शून्य रह जाता है। ध्यान की यही अवस्था है, उसको हमने समाधि कहा है।
दो शब्द बनाने चाहिए। ध्यान समाधि और प्रेम समाधि। समाधि तो दोनो मे एक हीं है, लेकिन दोनो के मार्ग बड़े अलग है। पुरुष को जो समाधि उपलब्ध होती है, जो बुध्द को उपलब्ध हुई, वह है ध्यान समाधि। पर को छोड़ा, स्व छूट गया, समाधि उपलब्ध हुई।
मीरा को जो समाधि उपलब्ध हुई, वह है प्रेम समाधि। पर को नहीं छोड़ा, स्व को समर्पित किया। इतना समर्पित किया कि स्व न बचा, पर हीं बचा। और जब पर अकेला बचा तो पर भी मिट गया, समाधि उपलब्ध हो गई। जहा दो मिट जाते है वहां समाधि। लेकिन मिरा की समाधि प्रेम से आयी। बुद्ध की समाधि ध्यान से आयी। समाधि तो एक ही है, लेकिन मार्ग बड़ा अलग - अलग है।     
स्त्री का मन का ढांचा हीं अलग है। पुरुष के मन का ढांचा अलग। इसलिए पुरुष महाबीर और बुद्ध बन जाता है। महाबीर को हमने नाम दिया है - जिन। जिसने जीत लिया। बुद्ध को हमने नाम दिया - बुद्ध। जो जाग गया। लेकिन मीरा से पुछो, जीता ? मीरा कहेगीहारे। कृष्ण को जीतने की बात ही बेहूदी है।मीरा कहेगी, तुम समझे ही नहीं प्रेम मे कही कोइ जीतता है, हारते है। मगर हार ही वहां जीत है। मिरा से पूछो, जागी ? मीरा कहेगी, जागना वहां कहां है ? वहां तो खोना है, वहां तो मिटना है..... * ओशो * एस धम्मो सनंतनो ।
( संकलन -  स्वामी जीवन संगीत  )
सभी मित्रों मे मेरा सादर नमन। जय ओशो।

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