प्रश्न : - ब्रह्म में रमण करने वाला क्या सचमुच भोग में रत हो
सकता है , अथवा वह उसका अभिनय करता है ?
ओशो :- ब्रह्म में रमण करने वाला ही केवल भोग में रत होता है ।
वही केवल भोगता है , परम आनंद को वही भोगता है ।
बाकी सब धोखे में हैं कि भोग रहे हैं ।
बाकी तो खोटे सिक्के ढो रहे हैं ।
भोग के नाम पर दुख भोग रहे हैं ।
तुम्हारे भोग को अगर सार-संक्षिप्त में कहा जाये तो दुख है ।
वही तुमने भोगा है । और क्या भोगा है ?
कहते तुम हो कि हम सुख भोग रहे हैं -- भोगते तुम दुख हो !
ब्रह्मज्ञानी ही केवल भोगता है । तेन त्यक्तेन भुंजीथाः --
जिन्होंने त्यागा उन्होंने ही भोगा । वह परमात्मा को भोगता है ।
तुम क्षुद्र को भोग रहे हो । और क्षुद्र को भोगकर महादुख पा
रहे हो ।
रामकृष्ण के पास एक दिन एक आदमी आया और उनके चरणों
में उसने बहुत से रुपये रखे । रामकृष्ण ने कहा , ले जा भाई ।
उस आदमी ने कहा कि आप महा-त्यागी -- इसका और एक
सबूत मिला । रामकृष्ण कहने लगे , महात्यागी तू है , हम नहीं ;
क्योंकि हम तो परमात्मा को भोग रहे हैं , तू छोड़ रहा है ।
तू धन बटोर रहा है , हम परमात्मा बटोर रहे हैं -----
त्यागी कौन है और भोगी कौन है ? भोगी हम हैं , त्यागी तू है ।
कंकड़-पत्थर जो बीन रहा है और हीरों को छोड़ रहा है , उसको
भोगी कहोगे या त्यागी ? व्यर्थ को जो संभाल रहा है और सार्थक
को गँवा रहा है , उसको ही त्यागी कहना चाहिये ।
ब्रह्म-रमण परम भोग है । वह जीवन के परम आनंद में प्रवेश है ।
उससे बडा़ फिर कोई आनंद नहीं ।
उसके अतिरिक्त सब दुख है ।
इसलिए तुम यह तो पूछो ही मत कि ब्रह्म में रमण करने वाला
क्या सचमुच भोग में रत हो सकता है । तुम्हारे भोग में रत नहीं
हो सकता , क्योंकि तुम्हारा भोग भोग ही नहीं है ।
वह भोग में ही रत है , लेकिन उसका और ही भोग है ।
उस भोग को जानने के लिए , तुम्हें अपना भोग खोना पडे़ ,
होश जगाना पडे़ । तुम सपने में हो ।
अभी तुमने भोगा कुछ भी नहीं है , केवल भोग के सपने देखे हैं ।
ब्रह्मज्ञानी को सत्य का भोग उपलब्ध हुआ है ,
परम-भोग उपलब्ध हुआ है ।
!! ओशो !!
भज गोविन्दम्
तर्क का सम्यक प्रयोग - प्रवचन ६
से संकलित एक प्रश्नोत्तर
दिनांक १६-११-१९७५
पूना ।।
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