Bhagwad Geeta : श्रीमद् भगवद्गीता
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः ।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते ॥ (२.५९)
TRANSLATION
The embodied soul may be restricted from sense enjoyment, though the taste for sense objects remains. But, ceasing such engagements by experiencing a higher taste, he is fixed in consciousness.
भावार्थ : इन्द्रियों द्वारा विषयों को ग्रहण न करने वाले मनुष्य के विषय तो मिट जाते हैं, परन्तु उनमें रहने वाली आसक्ति बनी रहती है, ऎसे स्थिर बुद्धि वाले मनुष्य की आसक्ति भी परमात्मा का साक्षात्कार करके मिट जाती है। (२.५९)
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