1/15/2015

Bhagwad Geeta


Bhagwad Geeta : श्रीमद् भगवद्गीता 





विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः ।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते ॥ (२.५९)

TRANSLATION
The embodied soul may be restricted from sense enjoyment, though the taste for sense objects remains. But, ceasing such engagements by experiencing a higher taste, he is fixed in consciousness.

भावार्थ : इन्द्रियों द्वारा विषयों को ग्रहण न करने वाले मनुष्य के विषय तो मिट जाते हैं, परन्तु उनमें रहने वाली आसक्ति बनी रहती है, ऎसे स्थिर बुद्धि वाले मनुष्य की आसक्ति भी परमात्मा का साक्षात्कार करके मिट जाती है। (२.५९)


1/14/2015

Bhagwad Geeta


Bhagwad Geeta 



यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गनीव सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ (२.५८)
TRANSLATION :
One who is able to withdraw his senses from sense objects, as the tortoise draws its limbs within the shell, is firmly fixed in perfect consciousness.
भावार्थ : जिस प्रकार कछुवा सब ओर से अपने अंगों को समेट लेता है, उसी प्रकार जब मनुष्य इन्द्रियों को इन्द्रिय-विषयों से सब प्रकार से खींच लेता है, तब वह पूर्ण चेतना में स्थिर होता है। (२.५८)