12/25/2011

श्री गणपती अथर्वशीर्ष !!

 श्री गणपती अथर्वशीर्ष
हरिः ॐ नमस्ते गणपतये॥ त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमासि॥ त्वमेव केवलं कर्तासि॥
त्वमेव केवलं धर्तासि॥ त्वमेव केवलं हर्तासि॥ त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि॥
त्वं साक्षादात्मासि नित्यं ॥ १॥
ऋतं वच्मि॥ सत्यं वच्मि॥ २॥
अव त्वं माम्॥ अव वक्तारम्॥ अव श्रोतारम्॥ अव दातारम्॥ 
अव धातारम्॥ अवानूचानमव शिष्यम्॥ अव पश्चात्तात्॥ अव पुरस्तात्॥ 
अवोत्तरात्तात्॥ अव दक्षिणात्तात्॥ अव चोर्ध्वात्तात्॥ 
अवाधरात्तात्॥ सर्वतो मां पाहि पाहि समंतात्॥ ३॥
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः॥ त्वमानंदमयस्त्वं ब्रह्ममयः॥
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि॥ त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि॥ त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि॥ ४॥
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते॥ सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति॥ 
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति॥ सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति॥ 
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः॥ त्वं चत्वारि वाक्पदानि।।५॥
त्वं गुणत्रयातीतः त्वं देहत्रयातीतः॥ त्वं कालत्रयातीतः त्वं मूलाधारास्थितोऽसि नित्यम्॥
त्वं शक्तित्रयात्मकः॥ त्वां योगिनोध्यायंति नित्यम्॥
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वंमिंद्रस्त्वमग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुवःस्वरोम्॥ ६॥
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरम्॥ अनुस्वारः परतरः॥
अर्धेन्दुलसितं॥ तारेण ऋद्धं॥ एतत्तव मनुस्वरूपम्॥ 
गकारः पूर्वरूपम्॥ अकारो मध्यमरूपम्॥ अनुस्वारश्चांत्यरूपम्॥ 
बिन्दुरुत्तररूपम्॥ नादः संधानम्॥ संहिता संधिः॥ सैषा गणेशविद्या॥
गणक ऋषिः॥ निचृद्गागायत्रीच्छंदः॥ गणपतिर्देवता॥ ॐ गं गणपतये नमः॥ ७॥
एकदंताय विघ्नहे वक्रतुण्डाय धीमहि॥ तन्नो दंतिः प्रचोदयात्॥ ८॥
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणाम॥ रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम्॥
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्॥ रक्तगंधानुलिप्तांगं रक्तपुष्पैः सुपूजितम्॥ 
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्॥आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम्॥
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः॥ ९॥
नमोत्रातपतये। नमो गणपतये। नमः प्रमथपतये। 
नमस्ते अस्तु लंबोदरायैकदंताय विघ्नानाशिने शिवसुताय श्रीवरदमूर्तये नमो नमः॥१०॥
एतदथर्वशीर्षं योऽधीते॥ स ब्रह्मभूयाय कल्पते॥
स सर्वविघ्नैर्नबाध्यते॥ स सर्वत: सुखमेधते । स पंचमहापापात्प्रमुच्यते॥
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति॥ प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति॥
सायं प्रातः प्रयुंजानो अपापो या भवति॥सर्वत्राधीनोऽपविघ्नो भवति॥ 
धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति॥ इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयं ॥ 
यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति। सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्॥ ।
अनेन गणपतिमभिषिंचति स वाग्मी भवति॥ 
चतुर्थ्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति। इत्यथर्वणवाक्यम्॥ 
ब्रह्मद्यावरणं विद्यात् । न बिभेति कदाचनेति॥
यो दूर्वांकुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति॥
यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति स मेधावान् भवति॥ 
यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छितफलमवाप्नोति॥
यः साज्यसमिद्भिर्यजति स सर्वं लभते स सर्वं लभते॥
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति॥ 
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ वा जप्त्वा सिद्धमंत्रो भवति॥ 
महाविघ्नात्प्रमुच्यते॥ महादोषात्प्रमुच्यते॥ महापापात् प्रमुच्यते॥ 
स सर्वविद्भवति स सर्वविद्भवति॥ य एवं वेद इत्युपनिषत्॥ १४॥
ॐ सहनाववतु॥ सहनौभुनक्तु॥ सह वीर्यं करवावहै॥
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥
ॐ शांति॒: । शांति॒:॥ शांति॑:॥
॥ इति श्रीगणपत्यथर्वशीर्षं समाप्तम्॥

12/24/2011

श्रीगणेशाची आरती

श्रीगणेशाची आरती

सुखकर्ता दु:खहर्ता वार्ता विघ्नाची।।
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची।।
सर्वांगीं सुंदर उटि शेंदुराची।।
कंठीं झळके माळ मुक्ताफळांची।। १ ।।

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती ओ श्रीमंगलमूर्ती।।
दर्शनमात्रें स्मरनेमात्रें मनकामना पुरती ।। धृ.।।

रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा।
चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा।।
हिरेजडित मुगुट शोभतो बरा।।
रुणझुणती नूपुरें चरणीं घागरिया।। जय.।। २ ।।

लंबोदर पितांबर फणिवरबंधना।।
सरळ सोंड वक्रतुंड त्रिनयना।।
दास रामाचा वाट पाहे सदना।।
संकष्टीं पावावें निर्वाणीं रक्षावें सुरवरवंदना।।
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती ओ श्रीमंगलमूर्ती ।। दर्शन.।। ३ ।।

12/23/2011

गीता सार

गीता - सार

“खाली हाथ आए और खाली हाथ चले।
जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का

था, परसों किसी और का होगा।
इसिलिए, जो कुछ भी तू करता है,
... उसे भगवान के अर्पण करता चल।“

क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो?
किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें
मार सक्ता है? आत्मा ना पैदा होती
है, न मरती है।

जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा
है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा,
वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का
पश्चाताप न करो। भविष्य की
चिन्ता न करो। वर्तमान चल
रहा है।

तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो?
तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो
दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो

नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए
जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर
दिया। जो लिया, इसि (भगवान) से लिया। जो
दिया, इसि को दिया।
खाली हाथ आए और खाली हाथ चले।

जो आज तुम्हारा है, कल और
किसी का था, परसों किसी और
का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो
रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का
कारण है।परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे

तुम मृत्यु समझते हो, वही तो
जीवन है। एक क्षण में तुम करोडों के
स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही
क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा,
छोटा-बडा, अपना-पराया, मन से मिटा दो,
फिर सब तुम्हारा
है। तुम सबके हो।

न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम
शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु,
पृथ्वी, आकाश से बना है और
इसि में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा

स्थिर है – फिर तुम क्या हो?
तुम अपने आपको भगवान

के अर्पित करो। यही सबसे
उत्तम सहारा है।

जो इसके सहारे को जानता है वह
भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
जो कुछ भी तू करता है,
उसे भगवान के अर्पण
करता चल।

ऐसा करने से सदा जीवन – मुक्त
का आनंन्द अनुभव करेगा।

12/22/2011

हनुमान चालीसा

हनुमान  चालीसा
(Hanuman Chalisa)
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित
दोहा
श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि
बरनउ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार

चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥

शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥

विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥

लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥

सब सुख लहैं तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥

भूत पिशाच निकट नहि आवै
महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥

संकट तै हनुमान छुडावै
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा
तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता॥३१॥

राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

अंतकाल रघुवरपुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥

और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥

संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

जै जै जै हनुमान गुसाईँ
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा
होय सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥

दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥

12/21/2011

रामरक्षा स्तोत्र

रामरक्षा स्तोत्र

अस्य श्रीरामरक्षा स्तोत्र मन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः।
श्री सीतारामचंद्रो देवता । अनुष्टुप्‌छंदः। सीता शक्तिः।
श्रीमान हनुमान्‌कीलकम्‌। श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ।

अथ ध्यानम्‌:
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌। वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकार दीप्तं दधतमुरुजटामंडलं रामचंद्रम ।
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌॥१॥

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितम्‌ ॥२॥

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरांतकम्‌।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥४॥

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥५॥

जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवंदितः ।
स्कंधौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥६॥

करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥७॥

सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
उरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत्‌ ॥८॥

जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः ।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥९॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्‌ ।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌॥१०॥

पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः ।
न दृष्टुमति शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥११॥
रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्‌।
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥

जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाऽभिरक्षितम्‌।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥१३॥

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥१४॥
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।
तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥१५॥

आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्‌।
अभिरामस्रिलोकानां रामः श्रीमान्स नः प्रभुः ॥१६॥

तरुणौ रूप सम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥

शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥१९॥

आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम्‌॥२०॥
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥२१॥
रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥२२॥

वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥२३॥

इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयाऽन्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥२४॥

रामं दूवार्दलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्‌।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ॥२५॥

रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌।

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌॥२६॥

रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥२७

श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीरामचन्द्रचरणौ वचंसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९

माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयलुर्नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदे रघुनन्दनम्‌ ॥३१॥

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

कूजन्तं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्‌।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्‌।
तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥

रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रामेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
॥ श्री बुधकौशिक विरचितम् श्रीरामरक्षास्तोत्रं सम्पूर्ण ॥

12/08/2011

श्री विठ्ठलाची आरती

पांडुरंगाची आरती 

युगें अठ्ठावीस विटेवर उभा ॥
वामांगी रखुमाई दिसे दिव्य शोभा ॥
पुंडलिकाचे भेटी परब्रह्म आलें गा ॥
चरणीं  वाहे भीमा उद्धरीं जगा ॥ १ ॥

जयदेव जयदेव जय पांडुरंगा ॥
रखुमाईवल्लभा, राईच्या वल्लभा पावें जिवलगा  ॥ धृ ॥

तुळसीमाळा गळां कर ठेउनि टीं
कांसें पीतांबर कस्तुरी लल्लाटी ॥

देव सुरवर नित्य येती भेटीं
गरुड हनुमंत पुढें उभे रहाती ॥ जय. ॥ २ ॥

धन्य वेणूनाद अणुक्षेत्र पाळा ॥
सुवर्णाची कमळें वनमाळा गळा
राई रखुमाबाई राणीया सकळा ॥
ओंवाळीती राजा विठोबा सांवळा ॥ जय. ॥ ३ ॥

ओंवाळूं आरत्या कुरवंड्या येती ॥
चंद्र्भागेमाजी सोडूनियां देती ॥
दिंड्या पताका वैष्णव नाचती ॥
पंढरीचा महिमा वर्णावा किती ॥ जय. ॥ ५ ॥
आषाढी कार्तिकी भक्तजन येती ।
चंद्रभागेमाजीं   स्नानें जे करिती ॥
दर्शन हेळामात्रे तयां होय मुक्ती ॥
केशवासी नामदेव भावें ओंवाळीती ।। जय . ॥ ६ ॥
 

12/07/2011

श्री शंकराची आरती

श्री  शंकराची  आरती  !!



लवथवती विक्राळा ब्रह्मांडी माळा।
विषें कंठी काळा त्रिनेत्रीं ज्वाळां।।
लावण्यसुंदर मस्तकीं बाळा।
तेथुनियां जळ निर्मळ वाहे झुळझुळां ।।1।। 
जय देव जय देव  जय शिव शंकरा !!
 
जय देव जय देव जय श्रीशंकरा।।
आरती ओवाळूं तुज कर्पुगौरा ।।ध्रु.।।
कर्पुगौरा भोळा नयनीं विशाळा।  
अर्धांगीं पार्वती सुमनांच्या माळा।
विभुतिंचें उधळण शितिकंठ नीळा।
ऐसा शंकर शोभे उमावेल्हाळा ।। जय. ।।2।।
देवी दैत्यीं सागरमंथन पैं केलें।
त्यामाजी जें अवचित हळाहळ उठिलें।
तें त्वां असुरपणे प्राशन केलें।
नीळकंठ नाम प्रसिद्ध झालें।। जय. ।।3।।
व्याघ्रांबर फणिवरधर सुंदर मदनारी।
पंचानन मनमोहन मुनिजनसुखकारी।
शतकोटीचें बीज वाचे उच्चारी।
रघुकुतिक रामदासा अंतरी।।
जय देव जय देव जय श्रीशंकरा।।4।।

12/06/2011

श्री विठ्ठलाची आरती

 श्री   विठ्ठलाची  आरती

येई हो विठ्ठले माझे माऊली ये ॥ निढळावरी कर ठेऊनी वाट मी पाहे ॥ धृ. ॥
आलिया गेलीया हातीं धाडी निरोप ॥ पंढरपुरी आहे माझा मायबाप ॥ येई. ॥ १ ॥
पिंवळा पीतांबर कैसा गगनी झळकला ॥ गरुडावरी बैसून माझा कैवारी आला ॥ येई. ॥ २ ॥
विठोबाचे राज आम्हां नित्य दिपवाळी ॥ विष्णुदास नामा जीवेंभावे ओंवाळी ॥ येई हो. ॥ ३ ॥

12/05/2011

देवीची आरती

दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारीं
अनाथ नाथे अंबे करुणा विस्तारीं
वारीं वारीं  जन्म मरणांते वारीं
हारी पडलो आता संकट निवारीं॥१॥ 



जय देवी जय देवी महिषासुरमथिनी। सुरवरईश्र्वरवरदे तारक संजीवनी॥धृ॥
त्रिभुवनभुवनीं पहातां तुज ऐसे नाहीं
चारी श्रमले परंतु न बोलवे कांहीं
साही विवाद करितां पडले प्रवाहीं
ते तूं भक्तां लागीं  पावसी लवलाहीं॥२॥जय देवी o

प्रसन्न वदने प्रसन्न होती निजदासा।
क्लेशांपासूनी सोडीं तोड़ीं भवपाशा।
अंबे तुजवांचून कोण पुरवील आशा।
नरहरी तल्लीन झाला पदपंकजलेशा॥३॥ जय देवी o